गौरैया का भोज्य है, काकुन कीड़ा धान
झुरमुट से स्नेह है, माँगे नहीं मकान
माँगे नहीं मकान, ज़रूरत है तिनका भर
मत दुत्कारो उसे, फुदकने दो अपने घर
जिज्ञासा मनुहार, बुलातीं निज अँगनैया
आजा ओ लाडली, दुलारी प्रिय गौरैया॥
मेरे रोशनदान में, गौरैया का वास
लोकतंत्र से माँगती, जंगल में आवास
जंगल में आवास, हरी हो तरु की डाली
एक बनाऊँ नीड़, कँगूरे हों, हो जाली
चूँचूँ कर गुलज़ार, करें घर चूजे घेरे
विनय निवेदन आस, तुम्हीं से मानव मेरे॥
जिज्ञासा सिंह