मैं जीवन में नित नए अनुभवों से रूबरू होती हूँ,जो मेरे अंतस से सीधे साक्षात्कार करते हैं,उसी साक्षात्कार को कविता के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास है मेरा ब्लॉग, जिज्ञासा की जिज्ञासा
साँसों का साथ
हकीकतों ने पाला है
नींद की गद्दारी
क्षणिकाएं ( मान्या सिंह को समर्पित)
नियति का क्रूर दंश ( हृदयाघात )
मुझपे बिजली गिरा गई नियति
दे गई घाव और जला गई नियति
चले भी कितना थे हम साथ उनके
कदमों को हाशिए पे रुका गई नियति
अभी कल ही तो ख़ुशगवार मौसम था
आई आँधी और सब कुछ उड़ा गई नियति
जो चमन उनके संग गुलाबों का लगाया था मैंने
उन्हीं के काँटों में उलझा गई नियति
ये सोचता कौन है कि कल क्या होगा
इन्हीं प्रश्नों में किस तरह उलझा गई नियति
वो दो शब्द कह तो जाते मुझसे आख़िर में
उन्हें सुनने को तरसा गई नियति
ये उजाले ये रोशनी चुभ रही है मुझको
घुप अंधेरों से दोस्ती करा गई नियति
अब कहें तो किससे और क्या बोलें
सब आंसुओं से बात करा गई नियति
लोग कहते हैं कि भूल जाओ सब कुछ अब
करूँ, क्या और कैसे ? भूलना ही भुला गई नियति
समझ तो जाऊँगी उनकी बेबसी को एक दिन
ज़िंदगी को फ़साना बना गई नियति
वो इस तरह बेरुख़ी कर नहीं सकते
दिले नादान से धोखा दिला गई नियति
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल