आज कायाकल्प करना.. गीत

आज कायाकल्प करना

उड़ चले उन तीतरों को रोकना,

जो कुलाचें मारते मैदान बिन।

मद में डूबे हाथियों के झुंड से,

चल रहे हैं दूमते राहों पे जिन।

रौज में उड़ना दूमना ठीक है,

है ज़रूरी पंख के परवाज़ खुलना॥


मछलियों का झुंड कछुओं की, 

गति में है पुरातन से अतल में। 

बीन बजता नागमणि के सामने,

दर्प दिखता नीरनिधि के सजल में।

देखना दिखना दिखाना खूब है,

है जरूरी धार पकड़े साथ बहना॥


मार्ग हैं पगडंडियां सड़के भी हैं,

कौन राही किस डगर जाता कहाँ?

हाथ पकड़े अंक भरते पीठ धारे,

हैं दिखे क्या मंजिलों के नव निशाँ। 

चाल चलकर चर चलाना चाल चलन,

है जरूरी समय के पांवों से चलना॥


जिज्ञासा सिंह