गावत मेघ मल्हार

 

कंत तुम कब आओगे

नेह की परत फुहार ।

गले से लग जाओगे

बन के चंदन हार 


भानु सहेजे किरन भोर की

दृग झपकाए लाल गरभ का ।

जैसे कमलनी खिले कलिका बिच

माथ ढका आँचल बिच माँ का ॥

थाल सजाए दीपक बाती

राह निहारे द्वार 

कंत तुम कब आओगे

नेह की परत फुहार 


अम्बर धरती ढूँढ चुकी सब

घनि अँधियारी रैना ।

पावस ऋतु है बिरह की मारी

आए  पल एक चैना ॥

बूँद झरे संग झर-झर जाए

यौवन का श्रिंगार 

कंत तुम कब आओगे 

नेह की परत फुहार 


केश उड़े बदरी संग घूमे

लौटे अम्बर छूके ।

गाए गीत मधुर कोयलिया

दामिनि रहि रहि चमके ॥

मोतियन रूप धरे आए हैं

गावत मेघ मल्हार 

कंत तुम कब आओगे 

नेह की परत फुहार 


**जिज्ञासा सिंह**

समय बना अंजान


समय बना अंजान तमाशा देखेगा ।
बन कर के नादान तमाशा देखेगा ॥

चुंधियाएगी आँख ज़माने की चकमक से ।
लगना न कुछ हाथ किसी भी बकझक से ॥
चुपके चुपके चलके पीछे खड़ा हुआ,
खोले दोनों कान तमाशा देखेगा ॥

जीत उन्हीं की होनी है ये तो पक्का है ।
कुछ होनी अनहोनी है लगना धक्का है ॥
मंत्र फूँकने वाले कानों में फूँकेंगे
छल का सजा मचान तमाशा देखेगा ॥

हो जाओ होशियार लोमड़ी की चालों पे।
गिद्ध दृष्टि रखना है कोरे भौकालों पे ॥
सातों इन्द्रिय खुली हुई होंगी जिसकी,
मारेगा मैदान तमाशा देखेगा ॥

**जिज्ञासा सिंह**

आग में मुझको तपानी उँगलियाँ


आग में मुझको तपानी उँगलियाँ
तप के वे कुंदन बनेंगी ।
फिर वे जाने क्या लिखेंगी ?

वे कहीं लिख जाएँ न घर्षण मेरा
उस खुदा के सामने अर्पण मेरा ।
प्रेम की वो धार जो टूटी नहीं
आस औ विश्वास का तर्पण मेरा ॥
लरजती लिख जाएँगी श्वासों को मेरे
धड़कनों में बह रहा दर्शन लिखेंगी ।

वे कहीं लिख जाएँ न कोरा ये मन
कर न लें मेरी कथा का आँकलन ।
इस अकिंचन से हुआ व्यवहार जो 
बिखर कर खिलता रहा फिर भी चमन ॥
गर्म रेगिस्तान की मरुभूमि पर अश्रु के
छीटों का वे गुलशन लिखेंगी । 

क्या पता लिख जायँ वे रातों को मेरे 
कैसे बीतीं और कब आए सवेरे ?
सलवटें तो गिन नहीं वे पाई होंगी
दर्द कितने और बेचैनी बटोरे ॥
रात भर रिसते रहे जो धमनियों से
घाव के उस पीर का परचम लिखेंगी ।

अब रही न मूल्य की कोई कहानी
जो मुझे अब है उसे मुख से बतानी ।
स्वयं के अहसास से उपजे हुए
रूह की आँखों से निकला गर्म पानी ॥
उड़ रही जो इस जहाँ में हैं हवाएँ
फूल बनते धूल का कण कण लिखेंगी ।

**जिज्ञासा सिंह**

ऐ कलम तुझको खड़ा होना पड़ेगा

 


 कलम तुझको खड़ा होना पड़ेगा 

हर घृणा  पाप अब धोना पड़ेगा 


राह रोकेंगे सुनामी बन समंदर,

काट धारा नाव को खेना पड़ेगा 


आँधियाँ संग ले बवंडर जब उड़ेंगी,

उड़ हवा के साथ नभ छूना पड़ेगा 


चल पड़ेंगी गोलियाँ बंदूक़ ग़र तो,

तान सीना सामने चलना पड़ेगा 


हर मनुज की प्रेरणा तू है युगों से,

प्रेरणा का पुष्प बन खिलना पड़ेगा 


जिज्ञासा सिंह

  लखनऊ

सावन आने वाला है..बेटी विमर्श

 



ले लो ले लो हरी चूड़ियाँ
सावन आने वाला है 

गली गली में घूम बिसाती

बेच रहा मतवाला है 


चार बेटियाँ मुन्नू के घर

चौखट पर हैं रोक पड़ीं 

घूर रहे हैं ताऊ कक्कू

क्यों द्वारे पर हुईं खड़ीं 

देख देख के लोग हँसेंगे,

ये घर बेटी वाला है 


वारिस ख़ानदान का होगा

इसी आस में गीता आई 

गीता अपने पीछे सीता

सरिता और सुनीता लाई 

बड़े अशुभ गीता के पग,

दिखता वंशज का लाला है 


झूला लटका नीम डाल पर

पेंग छुए अम्बर से ऊपर 

कजरी गुड़िया तीज  गई

मेहंदी हाथ रची है मनहर 

गुणी सर्व सम्पन्न हुईं वे

रचतीं भोज निवाला है 


गोबर काढ़ बनातीं उपले

भूसा घास बीन लातीं 

चारा काट खिला देतीं

भैंसों से भी  घबरातीं 

रहीं अँगूठा छाप किताबी

अक्षर दिखता काला है 


हुईं सयानी ब्याह रचा

पट्टीदारों का भोज हुआ 

मोल ख़रीदा खूब खिलाया

चुल्हिया न्योता रोज़ हुआ 

बिदा कर दिया दो धोती में

पड़ा करम गति ताला है 


**जिज्ञासा सिंह**

हर उपलब्धि नेट पर

 

कलम दवात हुए छू मंतर

तख़्ती बुतका ग़ायब ।

कम्प्यूटर का चला जमाना

पढ़े लिखेंगे सब ॥


पट्टी टाट पालथी उकड़ू

दिखता योगा डे पर

चले गुरु जी पानी भरने

हर उपलब्धि नेट पर

यूटूब पर पापड़ रेसिपी

अम्मा ढूँढ रहीं अब 


बड़े-बड़े विद्वान मिलेंगे

फ्री में ट्विटर कू पर

गाज गिर गई बड़की ज्ञानी

पड़ी लिखी फूफू पर 

ऐसे बेग़ैरत मौसम में

कहाँ मिलेंगे रब 


अरे हमारे भी कुछ दिन थे

सुन लो बेटा बेटी 

नौ मन तेल मिला  नाची

 मैं रूठ के लेटी 

देखूँ बहतीं दूध की नदियाँ

तेरी ख़ातिर भर टब 


**जिज्ञासा सिंह**