कंत तुम कब आओगे
नेह की परत फुहार ।
गले से लग जाओगे
बन के चंदन हार ॥
भानु सहेजे किरन भोर की
दृग झपकाए लाल गरभ का ।
जैसे कमलनी खिले कलिका बिच
माथ ढका आँचल बिच माँ का ॥
थाल सजाए दीपक बाती
राह निहारे द्वार ।
कंत तुम कब आओगे
नेह की परत फुहार ॥
अम्बर धरती ढूँढ चुकी सब
घनि अँधियारी रैना ।
पावस ऋतु है बिरह की मारी
आए न पल एक चैना ॥
बूँद झरे संग झर-झर जाए
यौवन का श्रिंगार ।
कंत तुम कब आओगे
नेह की परत फुहार ॥
केश उड़े बदरी संग घूमे
लौटे अम्बर छूके ।
गाए गीत मधुर कोयलिया
दामिनि रहि रहि चमके ॥
मोतियन रूप धरे आए हैं
गावत मेघ मल्हार ।
कंत तुम कब आओगे
नेह की परत फुहार ॥
**जिज्ञासा सिंह**