उम्र को जाना है

 

उम्र को जाना है

वो तो जा रही है,

याद का मधुरिम

तराना गा रहे हम 


खट्टी-मीठी-शर्बती

नमकीन जो थी,

उसके अफ़साने में 

डूबे जा रहे हम 


क्या कहें इस कदर

डूबे उबर ना पाए कभी,

खुल  पाई बंद मुट्ठी

उड़ गया हर आसमाँ 

रास्तों पे रास्ते की 

भीड़ में चलके अकेले,

कदम पर ही कदम रख

गुजरा अनेकों कारवाँ 


बंद हों या खुली आँखें

पुतलियों ने दृश्य देखा,

लुट रही अपनी अमानत

और लुटाते जा रहे हम 


ज्यों फिसलती रेत

अपने आप,

पाँचों उँगलियों से

रोक  पाती हथेली 

उम्र की बढ़ती उमर

दर्पण दिखाता,

झाँकते केशों की लड़ियाँ

बन रहीं अनुपम सहेली 


लीजिए आनंदकहिए

पकड़कर इस दौर से,

उम्र ढलती जा रही और

जवाँ होते जा रहे हम 


**जिज्ञासा सिंह**

चिड़िया रोई भर आकाश


चिड़िया रोई भर आकाश ।
धुआँ उड़ाता चला समीरण,
अश्रु बहा, भीगा है रज कण,
बिखरा उजड़ा चमन कह रहा 
मरा हुआ इतिहास ॥

सूत-सूत पंखों में लपटें
ज्वाला मध्य घिरा है नीड़ ।
ध्वंस विध्वंस धरातल जंगल
मूक बधिर अतिरंजित भीड़ ॥
धनुष चढ़ाए बाण शिकारी
ढूँढ रहे अब लाश ।
चिड़िया रोई भर आकाश ॥

बड़े-बड़े गिद्धों ने बोला
घबराने की बात नहीं ।
पात-पात हम देख रहे हैं
दिन है, कोई रात नहीं ॥
आस और विश्वास कर गया,
सब-कुछ सत्यानाश ।
चिड़िया रोई भर आकाश ॥

करुण-रुदन-क्रंदन चिड़ियों का
मुस्काते चीते ।
बिलख चिरौटे गिरें धरनि पर
ध्वजवाहक जीते ॥
हुआ अमंगल, तृण-तृण जलता
चारों ओर विनाश ।
चिड़िया रोई भर आकाश ॥

**जिज्ञासा सिंह**

चिंघार

 

टूट कर बिखरा हुआ एक सीप 

सागर के किनारे आज देखा 

मोतियों की हो रही थी लूट 

लूटते मछुआरे आज देखा 


चींटियों का एक बड़ा 

अम्बार घेरे था खड़ा 

खोल लुढ़का सीप का 

मुँह को छुपाए था पड़ा 

सिसकती आवाज़ बहती

आँसुओं की धार,

कोरों से सिधारेआज देखा 


चील कौवे गिद्ध उतरे

भेड़िए कुत्ते भी दौड़े 

एक कतरा एक कतरा

नोच कर खाने को उमड़े 

नीयतों में खोट,

जिनके म्यान में तलवार,

बिन लड़ेहारे आज देखा 


ये कोई अद्भुत

अजनबी दृश्य  था 

नित्य सुनते कान,

अब आँखों ने देखा 

चीख निकले आह,

पीड़ा घोरअति चिंघार

अपने ही द्वारेआज देखा 


**जिज्ञासा सिंह**

दो बाल कविताएँ

 


बाल दिवस

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१४ नवम्बर को आता है बाल दिवस ।

नन्हें और मुन्नों को भाता है बाल दिवस ॥


चाचा नेहरू का प्यारा जनमदिन,

बच्चों की महिमा बताता है बाल दिवस ॥


तरह-तरह की ख़ुशियाँ है देता,

देश प्रेम करना सिखाता है बाल दिवस ॥


खूब पढ़ें हम आगे बढ़ें हम,

ज़िम्मेदार हमको बनाता है बाल दिवस ॥


दीन-हीन बच्चों का शोषण न करना,

जीवन मूल्य समझाता है बाल दिवस ॥


ये दिन बस बच्चे का दिन है,

माता-पिता को बताता है बाल दिवस ॥


(२)सत्य बोलना प्यारे

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सत्य निष्ठ बनना

प्रश्नों से बच जाओगे ।

सच के राजा 

हरिश्चन्द भी कहलाओगे ॥


पकड़ नहीं पाएगा 

तुमको कहीं कोई ।

जो भी होगी बतला 

देना बात सोई ॥

झूठ सही बतलाना

बिलकुल टेढ़ी खीर

पकड़ गए तो आँखों

से गिर ही जाओगे ॥


एक झूठ को सौ-सौ 

दफ़ा बनाना होगा ।

अपनी ग़ैरत पाँव तले 

कुचलाना होगा ॥

झूठ सदा अपनों का

दुश्मन बहुत बड़ा

झूठ बोलकर वैरी

सदा बढ़ाओगे ॥


कभी-कभी कुछ लोग

झूठ से हैं बच जाते ।

पर एक दिन तो हैं

पकड़े ही जाते ॥

अतः झूठ को त्याग

बनो स्पष्ट दुलारे

वरना एक दिन जाल में 

अपने फँस जाओगे ॥


**जिज्ञासा सिंह**

गुहार (राष्ट्रीय पक्षी दिवस)

छायाचित्र- संजय कुमार जी
मैं हूँ एक आज़ाद परिंदा 
पंख मेरे मत कतरो ।
काट दिए सब कानन कुंजन
मानव अब ठहरो ॥

दूर गगन में उड़ते उड़ते
थक धरती पर आऊँ ।
अंधियारी कारी रैना में
नीड़ गिरा मैं पाऊँ ॥
दो दाना और जल माँगू मैं
थोड़ा रहम करो ।
मैं हूँ एक आज़ाद परिंदा 
पंख मेरे मत कतरो ॥

तृष्णा ऐसी बढ़ी मनुज की
पेड़ कटा,डाली टूटी ।
क्या अपराध हुआ हमसे
दुनिया यूँ रूठी ॥
हम जैसे नन्हें जीवों पर 
कुछ तो ध्यान धरो ।
मैं हूँ एक आज़ाद परिंदा 
पंख मेरे मत कतरो ॥

जब न होंगे पेड़ और
पादप, वन की हरियाली ।
धरती से अम्बर तक सृष्टि
सदा दिखेगी काली ॥
तनिक सहेजो प्रकृति
तनिक जीवों पर रहम करो ॥
मैं हूँ एक आज़ाद परिंदा 
पंख मेरे मत कतरो ।।

**जिज्ञासा सिंह** 

बेटियों को समर्पित गीत.. तू बड़ी बिंदास है

 


तुझे मैं जानती हूँ

तू बड़ी बिंदास है,

करके ठानेगी

जो तेरे मन में है 


अरे जा कर ले अपने 

मन का मेरी बावरी,

तुझे मैं सौंप दूँगी फूल

 जो मेरे चमन में है 


घटाएँ गर ज़रा घुमड़ीं

किसी विपरीत बादल में 

सहम बरसेंगी आकर वे

स्वयं ही तेरे आँचल में 

सिंधु जो अतल गहरा

ये विस्तृत नभ है तेरा,

मैं धरती सौंप दूँगी

जो बसी मेरे नयन में है 


चलेगी तू जिधर भी

राह बनती जाएगी 

एक दिन चाँद पर

चढ़कर मुझे दिखलाएगी 

सुना होगा कि मछली

के नयन बेधे गए थे,

है सधता साधना से वाण

शक्ति गर लगन में है 


राह जो भटकना 

तो पलटना, पीछे मैं होऊँगी।

पकड़ लूँगी मैं तेरी बाँह

तेरे साथ चल दूँगी 

हूँ कहती मैं कभी दीवार

जैसे थिर नहीं रहना,

बादलों संग उड़ना खुल के

जा लगना गगन में है 


**जिज्ञासा सिंह**