ये मृदुल ऋतु का समय है


ये मृदुल ऋतु का समय है

एक तरुवर हँस रहा था 
मंजरी के बौर से हर
एक टहनी कस रहा था
भाल पे मोती जड़ा 
जगमग टिकोरों का मुकुट
झूमता धानी धरा
का हृदय है

पंछियों के झुण्ड कलरव
गान करते पंक्तियों में
आवरण विध्वंस करते
नींव भरते भित्तियों में
व्योम एकाकार 
मधुमय मधुर स्मित
इस जहाँ से उस जहाँ तक
एकमय है

मक्खियों ने डंक अपने
नोच डाले स्वयं ही
सर्प लिपटे नेवलों से
बाँह थामे गहमयी
वृष्टि में मकरंद झरते
गुदगुदी कलियों को 
कर-कर गीत गाती
भ्रमर टोली
गुंजमय है

जिज्ञासा सिंह