मैं जीवन में नित नए अनुभवों से रूबरू होती हूँ,जो मेरे अंतस से सीधे साक्षात्कार करते हैं,उसी साक्षात्कार को कविता के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास है मेरा ब्लॉग, जिज्ञासा की जिज्ञासा
बन्द आँखों का संसार
शून्य का चक्र
दिवास्वप्न
पारदर्शी तितलियाँ
माँ के बाद
माँ के कमरे में खड़े हैं
माँ तो रहीं नहीं जाने क्या
अब खोजे पड़े हैं
अलमारी से झाँकता माँ का तौलिया
मेरा पसीना पोंछने को आतुर है
सामने रखे चश्मे की
मेरे माथे की हर सलवटों पर नज़र है
उनका झालरों वाला बाँस का पंखा
लगता है अभी मेरी गर्मी कम कर देगा
बरनी का अचार मेरे
खाने के स्वाद को दोगुना कर देगा
मुझे खिलाते हुए
वह कौर कौर गिनेगी
मना करने के बावजूद
घी से नहाई रोटी डाल देगी
यादों में डूबा मैं और मेरा मन ये बातें
कर रहे हैं हौले हौले
काश हर कोई माँ के प्यार को
समय रहते समझ ले
पर वक़्त रहते न हम समझते हैं
न समझने देती है तृष्णा हमारी
सत्ता पने के बाद औलाद ही
बन जाती है स्वार्थी
ऐसा सोच ही रहा था मैं कि
माँ की तस्वीर धीरे से मुस्कराई
मुझसे कान में कहा,कल न सही बेटे
तुझे ये बात आज तो समझ में आयी
जिज्ञासा सिंह
चित्र साभार गूगल
छत विहीन( मजदूर )
हाँ ! छत विहीन हूँ मै
अपना कुछ भी नहीं, पराधीन हूँ मैं
कोरोना का दौर और मैं ( बाल कविता )
अब मत समझाओ न !
संवाद
भ्रूणहत्या (कन्या )
प्रार्थना
प्रार्थना तू कितनी महान है
चिंता भय शोक में डूबा हुआ मानव
तेरे सानिध्य में बनता इंसान है
प्रार्थना...
दुःखों का अंबार बौना नज़र आता है
करती अकाट्य कष्टों का निदान है
प्रार्थना...
मन का मैल धो देती है सदा के लिए
मन भरता तितली सी उड़ान है
प्रार्थना...
द्वेष घृणा ईर्ष्या कोसों दूर चले जाते हैं
मनन ही हर उलझन का निदान है
र्प्राथना...
नकार देती है मन में भरा अशुभ चिंतन
स्वस्थ विचारों को देती उचित स्थान है
प्रार्थना...
**जिज्ञासा**
तोहफा मेरा
तमाशबीन ( हिंसा )
किसान हूँ न
वृद्ध हूँ मैं
ब्रम्हाण्ड में, मैं कहाँ हूँ
भटकता हुआ अक्सर सोचता रहा हूँ
शायद बवंडर में घूमता एक तिनका हूँ
या उंजाले की तलाश करता
एक जलता बुझता दिया हूँ
या पगडंडी पर कटे हुए पेड़ का
पड़ा हुआ सूखा तना हूँ
या लू के थपेड़ों में जूझती
साँय साँय करती ग़र्म हवा हूँ
या बहने को तरसता,
सूखा पड़ा एक दरिया हूँ
या फिर अपनों की भीड़ में कोना ढूँढता
जीवन जी चुका एक वृद्ध इंसां हूँ
**जिज्ञासा सिंह**