हे हंसवाहिनी सरस्वती!.. प्रार्थना गीत

 

हे हँसवाहिनी सरस्वती

खोलो मेरे मन का दर्पण

मेरे कर कमलों में शोभित 

ये पुष्पहार करना अर्पण॥


कुंजन वन बीच सरोवर में

नित हंस विचरता था अनमन

माँ स्नेह आपका मिला अतुल

शरणागत आ बैठा चरनन

हम विहग जगत में भटक रहे

निज पंथ खोजते हैं कण-कण॥


न वेदपुराण पढ़े हमने

जानूँ ना गीता रामायण

नैनों में बसी एक छवि मनहर

शब्दों का कराती पारायण

इस शब्दमोह प्रेमी मन को

देना माँ निरंतरता क्षण-क्षण॥


माँगूँ सानिध्य आपका मैं

माँ ज्ञान मिले अज्ञान हटे

हम नित अनुभव के धनी बनें

कल्पना लोक में रहें डटे

पाठन औ पठन ही जीवन हो

जीतें अबोधता से हर रण॥


जिज्ञासा सिंह

🌼बसंत पंचमी की हार्दिक बधाई🌼

भाव के भूखे हुए हैं.. गीत


                                   भाव के भूखे हुए हैं

उठ रही दीवार के 

कानों से कह दो

उँगलियाँ होठों से

अब वे न उठाएँ

मृत्तिका होते हुए

रुधिराश्कों पे

चीर का एक सूत

ही अब फेर जाएँ

घाव दे लूटे हुए है॥


अंग हर प्रत्यंग हैं

इन बाजुओं की 

शक्ति में घुसपैठ

करती क्षीणता है

तीव्र कंटक की

चुभन का दर्द पीना 

अब समय की

धीरता गंभीरता है

पाँव के टूटे हुए हैं॥


नव नवल नव

पल्लवों के पात

अभिनव भाव से 

सविनय बुलाते

गेह रखते हैं खुले

जंजीर में जकड़े

हुए जो पाँव थिर-

थिर काँप जाते

बाड़ में रूँधे गए हैं॥


जिज्ञासा सिंह