तुम्हरे बचन कान्हा बेल्मैहैं,
घूमत अइहैं डोल ।
राधिके ! मधु बोलो कछु बोल ॥
जब से गए सुधि बिसरि गए हैं
हम उनके बिनु बाँझि भए हैं
ढरक-ढरक दोहज बहे हिय से
अधर खुश्क, अनबोल ।
राधिके ! मधु बोलो कछु बोल ॥
चरत धेनु, जमुना बिच कूदीं
ग्वालिन नयन परी हैं मूँदीं
गिरि आतुर, गिरधर कब अइहैं
अंगुलि घुमइहैं गोल ।
राधिके ! मधु बोलो कछु बोल ॥
अइसे जगत नाहिं कोई छोड़े
प्रिय-प्रेमी संग नाता तोड़े
चलत घरी बूझा नहिं मनवा
पियत अरंडी घोल ।
राधिके ! मधु बोलो कछु बोल ॥
**जिज्ञासा सिंह**