गौरैया दिवस पर दो बालगीत

 


(१) जंगल बिन मंगल न होगा

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आसमान में उड़ने वाले

मेरे पंख नहीं हैं।

हिलते-डुलते चूजे ने

निज मन की बात कही है॥


कोमल-कोमल देंह हमारी

लुढ़क रहा हूँ इधर उधर।

कितनी भी कोशिश कर लूँ

मैं उठ न पाऊँ गिरकर॥

अम्मा मेरी दाना लाने

जानें कहाँ गयी है॥


रात-रात भाई बहनों की

धक्कामुक्की होती।

मेरी सबसे छोटी बहना

दबकर नीचे रोती॥

छोटा नीड़ भरी गर्मी 

बस दुख की बात यही है॥


पानी पेड़ सभी कुछ ग़ायब

छत पर माँ है रहती।

सर्दी-गर्मी वर्षा में

मौसम की मार है सहती॥

जंगल बिन मंगल न होगा

बिलकुल बात सही है॥


(२)कोयल कूक रही

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सुबह सवेरे बोल रही है

कोयल मधुरिम बोल।

दादी कहतीं भोर हो गई

जल्दी आँखें खोल ॥


अरी बावरी तेरी सखियाँ

सब गानें सुन लेंगीं।

कोयल के मीठी तानों से

सुंदर धुन रच लेंगीं॥

फिर गाएँगी गीत सुहाने

कानों में रस घोल ॥


दूर कहीं पेड़ों से झाँके

बैठी एक गिलहरी।

फ़र जैसी मख़मल सी काया

ओढ़े ओस सुनहरी॥

कोयल के गानों पे नाचे

घूम-घूम कर गोल ॥


मगन हो चली पवन बहे

झूमें डाली-डाली। 

इंद्रधनुष छाया अम्बर

धरती पर ख़ुशहाली॥

मनहर सुंदर छवि प्रभात की

मन जाता है डोल ॥


**जिज्ञासा सिंह**

महिला दिवस की तैयारियाँ हैं


देवियों और सज्जनों के

मध्य बैठी नारियाँ हैं।

सज रहा पांडाल महिला 

दिवस की तैयारियाँ हैं॥


भैंस के नथुने के जैसे

नाक में बेसर सजाए।

हाथ में सौ-सौ चुड़ीला

पहन काँधे तक चढ़ाए॥

काढ़तीं गोबर हैं गातीं

गीत पुरवाई के जो,

पाथतीं कंडे बनातीं

गर्म खारी रोटियाँ हैं॥


पंच सरपंची की टोपी

सज रही नव शीश पर।

मंच पर पतिदेवता हैं

वे हैं पिछली सीट पर॥

दस्तख़त का मूल्य सज 

चलकर चुकानें आ गईं,

स्वयं के उद्धार पर 

ख़ुद ही बजातीं तालियाँ हैं॥


जगत का हर ज्ञान 

धरती से गगन तक घूम डाला।

कर गुजरने में कभी

आँड़े न आई पाठशाला॥

भावना के मूल्य पर

प्रवंचना हावी रही,

डाल दी उनके ही आगे

स्वयं की सौ बोटियाँ हैं॥


भद्र जन का क्या कहें

सुभद्रियों की चाल वो।

हर युगों में काटती

अपनी रही हैं डाल जो।।

कौन फिर उसकी सुने

जिसने स्वयं को कोख में,

क़त्ल कर डाला निकाली

स्वयं की ही अर्थियाँ हैं॥


सज रहा पांडाल महिला 

दिवस की तैयारियाँ हैं॥


**जिज्ञासा सिंह**

रंगों का त्योहार

 


रंगों का त्योहार।

फागुन खड़ा, 

हमारे द्वार॥

होली आई है।

बहारें लाई है॥


घर आँगन गुलज़ार।

आपसी प्रेम,

बढ़ाना प्यार॥

क़सम ये खाई है।

होली आई है॥


सखी रंग गुलाल

ले के आ जाना। 

न शरमाना

न इतराना॥


खेलेंगे हम संग।

हाथ में ले गुलाल, 

औ रंग॥ 

खुमारी छाई है।

कि होली आई है॥


देखो आम

बहुत बौराया है। 

कली-कली पे

निखार अब छाया है॥


छाया हुआ बसंत।

बज रहा चारों,

तरफ मृदंग॥

संग शहनाई है।

होली आई है॥


गले सबको 

लगाना होली में।

सदभाव का

तोहफ़ा झोली में॥


देना हमको साज।

एकता प्रेम,

औ सभ्य समाज॥

मिटानी खाँई है।

होली आई है॥

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**जिज्ञासा सिंह**

रंगीं धरा चहुँओर.. दोहे

 

आया फागुन झूम के, पवन बही रसधार।

चूनर धूमिल ज्यों उड़ी, रंग गई रंग हजार॥


सुरभि आम के शीश पर, सजा रही है मौर।

गजमुक्तक सा है खिला, रंग सुनहरा बौर॥


जली होलिका धूम से, गाओ प्रियवर फाग।

ढोल-मज़ीरा संग में, सात सुरों का राग॥


होला-गादा भूनते, होली में होरियार।

पूजन कर के खा रहे, भागे सभी बुख़ार॥


सरसों का उबटन मला, मला रगड़कर तैल।

जला होलिका मध्य सब,तन-मन-धन का मैल॥


होली में घर आ गये, दूर बसे परिवार।

लाए हैं सबके लिए, प्रेम पगे उपहार॥


कोयल गाती गीत मधु, गाए फाग बसन्त।

आस देखती प्रेयसी, कब आयेंगे कंत॥ 


इंद्रधनुष के रंग में, रंगी धरा चहुँओर।

होली के उल्लास से, बचा न कोई छोर॥


गुझिया घर-घर बन रही, पापड़ औ नमकीन।

ठंढाई संग ले मज़ा, खाते सब शौक़ीन॥


रंग और उल्लास का, होली है त्योहार।

आपस में सद्भाव संग, देना सबको प्यार॥


**जिज्ञासा सिंह**

भ्रमणकारी पाँव मन के

 

आज मन मेरा 

मुसाफ़िर फिर चला है।

भागता अपने 

मुताबिक़ मनचला है॥


कह रही हूँ मान जा पर

वो मेरी सुनता नहीं है।

भावनाओं की मेरे वो 

कद्र अब करता नहीं है॥


तू वही है पूँछती क्या?

आज उसके लग गले,

जो विषमताओं में 

पग-पग चाहता मेरा भला है।


चुप हुआ जाता है 

मेरे पूँछने पर जाने क्यूँ?

बालपन से आज तक 

रूठा कभी मुझसे न यूँ॥


लाख मन उसका कुरेदूँ

हाथ न आए मेरे।

लग रहा नादानियों ने

फिर मेरी उसको छला है॥


मैं पकड़ पाऊँ न उसको

डोर उसकी दूर तक।

भ्रमणकारी पाँव मन के

भागता है बेधड़क॥


वो चला जाएगा तो कुछ

न बचेगा पास मेरे,

सोचकर घबरा गई 

ये कौन सी उसकी कला है?


मन है मैं हूँ और दूजा

है नहीं कोई यहाँ।

लौट आया फिर भटक कर 

दूर तक जाने कहाँ?


झाँकता आँचल उठा के

दे रहा मुझको तसल्ली।

छोड़कर जाना मुझे सच

में बहुत उसको खला है ॥


**जिज्ञासा सिंह**