बेटी पे गोली चल रही है ।।
कोई कहता है बेटी सिर पर भार है ,
पर मैंने तो उसे बेटे से भी बढ़कर पाला ।
हर रास्ते सुगम बनाए ,बहादुरी से जीना सिखाया ,
हर डगर पर , हर मोड़ पर सम्भाला ।।
फिर किस खता की सजा,
मेरी हर मासूम बेटियों को मिल रही है ?
क्या पढ़ाएं ...?
वह जब दुनिया में आई ,
तो कईयों ने मुँह बनाया ।
पर मैंने कहा मेरे घर लक्ष्मी आई है ,
उसे देख मेरा मन हर पल ,हर बार खुशी से मुस्कुराया ।।
लगता है नन्ही परी पायल पहने अभी भी ,
मेरे आँगन में छन्न छन्न चल रही है ।
क्या पढ़ाएं...?
वह नन्हें कदम कब अपने रास्ते ,
तय करने लगे पता ही नहीं चला ?
वह बढ़ती रही आगे बना के ,
हर विषमताओं से जरूरी फासला ।।
जाना ही नहीं मेरी लाड़ली किन मुश्किलों से गुज़र ?
जालिम दुनिया से लड़ रही है ।
क्या पढ़ाएं...?
लड़ते लड़ते आततायियों से,
शहीद हो गई वो आखिर में ।
सरेराह भीड़ के बीच ,
मारी गई गोली सिर में ।।
मेरी तो चली गई इस जहान से ,औरों की तो बचाओ,
जाने कितनी ललनायें इसी दहशत में पल रही हैं ।
क्या पढ़ाएं...?
ये जानती कि वो अब लौटेगी नहीं घर ,
तो छुपा लेती उसे आंचल में अपने ।
बच जाती वो और ममता मेरी ,
टूट भले जाते उसके सपने ।।
उसके सपनों की दुनिया सजाने के बदले ,
आज हमारी दुनिया धू-धू कर जल रही है ।
क्या पढ़ाएं...?
जिज्ञासा सिंह