करें कुछ नव सृजन, नव वर्ष में प्रण आज लेकर हम ।
वो धरती से जुड़ा, नभ से हो या हो प्रकृति का संगम ।।
राष्ट्र का हर मनुज गर, एक दो प्रण ले ले जीवन में ।
जगत कल्याण होगा, ठान ले सद्कर्म कुछ मन में ।।
कड़ी से ही कड़ी जुड़कर, बड़ी जंजीर बनती है ।
मनुज की एकता से राष्ट्र, की तकदीर खुलती है ।।
सदा ही मार्ग रोकेंगे, प्रथम पग पर ही कुछ अपने ।
मसलकर रौंद डालेंगे, वो कुसुमित हो रहे सपने ।।
डालकर बीज कटुता का, वो कांटे ही उगाएँगे ।
सुगम राहें कठिन करके, सदा रोड़ा लगाएँगे ।।
मगर बंजर में हरियाली, जो लाए वो मनुज विजयी ।
काटकर प्रस्तरों को राह, दिखलाए सदा सुजयी ।।
विकट स्थिति से वो, स्थिति बनाना ही हमें होगा ।
धरा को आज दोहन, से बचाना ही हमें होगा ।।
धरा की प्राणवायु, प्रकृति की सेवा हमें करनी ।
सुशोभित, पल्लवित, कुसुमित सदा दिखती रहे धरनी ।।
सहेजें पोखरों को और, नदियों को करें निर्मल ।
लगाएँ पौध की क्यारी, खिलें कलियाँ सरस कोमल ।।
जलाएँ एक दीपक और, उजियारा गगन तक हो ।
चाँद पर देश अपना हो, सदा ऊँचा ये मस्तक हो ।।
**जिज्ञासा सिंह**