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आसमान में उड़ने वाले
मेरे पंख नहीं हैं।
हिलते-डुलते चूजे ने
निज मन की बात कही है॥
कोमल-कोमल देंह हमारी
लुढ़क रहा हूँ इधर उधर।
कितनी भी कोशिश कर लूँ
मैं उठ न पाऊँ गिरकर॥
अम्मा मेरी दाना लाने
जानें कहाँ गयी है॥
रात-रात भाई बहनों की
धक्कामुक्की होती।
मेरी सबसे छोटी बहना
दबकर नीचे रोती॥
छोटा नीड़ भरी गर्मी
बस दुख की बात यही है॥
पानी पेड़ सभी कुछ ग़ायब
छत पर माँ है रहती।
सर्दी-गर्मी वर्षा में
मौसम की मार है सहती॥
जंगल बिन मंगल न होगा
बिलकुल बात सही है॥
(२)कोयल कूक रही
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सुबह सवेरे बोल रही है
कोयल मधुरिम बोल।
दादी कहतीं भोर हो गई
जल्दी आँखें खोल ॥
अरी बावरी तेरी सखियाँ
सब गानें सुन लेंगीं।
कोयल के मीठी तानों से
सुंदर धुन रच लेंगीं॥
फिर गाएँगी गीत सुहाने
कानों में रस घोल ॥
दूर कहीं पेड़ों से झाँके
बैठी एक गिलहरी।
फ़र जैसी मख़मल सी काया
ओढ़े ओस सुनहरी॥
कोयल के गानों पे नाचे
घूम-घूम कर गोल ॥
मगन हो चली पवन बहे
झूमें डाली-डाली।
इंद्रधनुष छाया अम्बर
धरती पर ख़ुशहाली॥
मनहर सुंदर छवि प्रभात की
मन जाता है डोल ॥
**जिज्ञासा सिंह**