कूड़ा बीनते बच्चे

चित्र -साभार गूगल 

जर्जर, मैली देह भटकते भूखे बच्चे 
दिल को देते दर्द कबाड़ में डूबे बच्चे 

कूड़े का है ढेर , ढेर में जाने क्या क्या 
ढूँढ रहे हैं नौनिहाल सपनों की दुनियाँ 
टोंटी, हैंडल,टूटी बोतल छाँट छाँट कर रखते बच्चे 
दिल को देते दर्द कबाड़ में डूबे बच्चे 

पीठ पे बोरा फटा, हाथ में थामे बलछी 
फटी शर्ट पतलून, पैर में चप्पल टूटी 
दौड़ दौड़ कर कूड़ा माँगें घर घर बच्चे 
दिल को देते दर्द कबाड़ में डूबे बच्चे 

कल पिंटू था, आज शकीला आठ बरस की 
चुन्नू,शबनम,रूमी,ऐला,भोला,छुटकी 
कूड़े वाला बदल बदल कर लाता बच्चे 
दिल को देते दर्द कबाड़ में डूबे बच्चे 

भूल गए माँ बाप जनमते जिन बच्चों को 
कभी-कभी जब कुछ खाने को दे दो उनको 
टुकुर टुकुर उस द्वार को रोज़ निहारे बच्चे 
दिल को देते दर्द कबाड़ में डूबे बच्चे 

चले पटाखे खूब और चमकी फुलझड़ियां 
दीपमालिका जली और बिजली की लड़ियां 
डिब्बे खोखे बीन बीन कर रखते बच्चे 
दिल को देते दर्द कबाड़ में डूबे बच्चे 

ऐसे कितने पर्व रोज आते जाते हैं 
पर इनको हम खड़ा गंदगी में पाते हैं 
ये मासूम निरीह और निश्छल से बच्चे 
दिल को देते दर्द कबाड़ में डूबे बच्चे 

आओ मिलकर समझे हम थोड़ा सा इनको 
नरक से बदतर बीत रहे इनके बचपन को 
हाथ थामने से बच जाएंगे ये बच्चे 
दिल को देते दर्द कबाड़ में डूबे बच्चे  

**जिज्ञासा सिंह**

29 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद शिवम् जी...।आपकी त्वरित प्रशंसा को नमन..।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२६-११-२०२०) को 'देवोत्थान प्रबोधिनी एकादशी'(चर्चा अंक- ३८९७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. अनिता जी, नमस्कार ! मेरी कृति को चर्चा अंक में चयनित करने के लिए आपका अभिनंदन करती हूँ...।

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  3. दिल को देते दर्द कबाड़ में डूबे बच्चे !!!
    सचमुच दिल को दर्द से भर गया ये मार्मिक काव्य चित्र जिज्ञासा जी। जीवंतता से विपन्नता में आकंठ डूबे मासूम नौनिहालों के अनकहे दर्द को बयाँ करती संवेदनशील रचना के लिए आप साधुवाद की पात्र हैं। 🙏🙏

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    1. बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूँ बहन आपका ,इतनी अच्छी और त्वरित टिप्पणी की आपने कि मन सच में खुश हो गया।ब्लॉग पे अपनी संवेदना को समझने वाले इतने मित्र पाकर आत्मविभोर हूँ..।सादर..।

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  4. ओह!!
    बहुत ही मार्मिक... दिल को छूती रचना
    सच में कूड़े के ढेर में ये बच्चे अपने बचपन में ही नरक झेल रहे हैं..
    लाजवाब सृजन आपका।

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    1. सच कहा आपने सुधा जी, इन बच्चों का जीवन देखकर लगता है कि ग़रीबी सबसे बड़ी मुसीबत है,जो मनुष्य को कुछ भी करने के लिए विवश कर देती है...आपकी प्रशंसा हमेशा प्रेरणा देती है..।सादर नमन..।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ नवंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।

    सादर
    धन्यवाद।

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    1. श्वेता जी नमस्कार !मेरी रचना को "पांच लिंकों का आनंद" में शामिल करने के लिए आभार व्यक्त करती हूँ । सादर....।

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  6. उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साहित करती है,कुछ लिखने के लिए ..।आपको मेरा अभिवादन ..।

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  7. यथार्थ चित्रण ! बहुत सही और हृदय स्पर्शी रचना।
    सामायिक विषयों और समस्याओं पर पकड़ अच्छी है आपकी करते रहें यूं ही सार्थक यथार्थवादी सृजन ।
    बहुत सुंदर।

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  8. बहुत ही सारगर्भित प्रशंसा की है आपने कुसुम जी ,हृदयतल से आपका आभार ..।आपका प्रोत्साहन हमेशा कुछ लिखने की प्रेरणा देगा ..।आपको मेरा अभिवादन ..।

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  9. जी धन्यवाद गगन जी ,आपका हृदय से आभार ..!

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  10. आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी का ब्लॉग पर स्वागत है । आपको मेरा हार्दिक अभिवादन ...।

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  12. 'ऐसे कितने पर्व रोज आते जाते हैं
    पर इनको हम खड़ा गंदगी में पाते हैं
    ये मासूम निरीह और निश्छल से बच्चे
    दिल को देते दर्द कबाड़ में डूबे बच्चे '
    .
    अफसोस अपनी विलासिता में डूबे हम लोग इस कटु सत्य को नहीं समझेंगे।
    मर्मस्पर्शी रचना।

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  13. नमस्कार यशवंत जी ,आपकी टिप्पणी बिल्कुल सच है ,पर शायद कभी हम सोच के भी कुछ नहीं कर पाते हैं ।कुछ हमारी कमी कुछ हमारे शासन तंत्र की..। आपका तहेदिल से आभार..।

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  14. आओ मिलकर समझे हम थोड़ा सा इनको
    नरक से बदतर बीत रहे इनके बचपन को
    हाथ थामने से बच जाएंगे ये बच्चे
    दिल को देते दर्द कबाड़ में डूबे बच्चे - - वास्तविकता की गहराइयों को स्पर्श करती रचना, बहुत कुछ सोचने पे मजबूर करती है, दरअसल आम लोग जिन्हें देख कर अनदेखा सा कर जाते हैं उनकी ज़िन्दगी को आप ने बारीकी से उकेरा है जो कहने को रंगीन नहीं लेकिन नग्न सत्य को उजागर करती है और यही एक ईमानदार रचियता की कामयाबी है - - नमन सह।

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  15. नमस्कार शान्तनु जी, आपकी इतनी सारगर्भित टिप्पणी को मेरा नमन है,ब्लॉग पर आपने समय दिया,जिसका हृदय से स्वागत ह...।सादर...।

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  16. मार्मिक सत्य को उकेरती कविता।बहुत अच्छा आप लिख रही हैं। माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे और लेखनी चलती रहे। बहुत पहले मेरी एक कविता की याद दिला दी आपने :https://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2018/07/blog-post_17.html

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    1. देखा, जो तूने कचरो पर,
      सपने बच्चों के पलते हैं.
      सीसी बोतल की कतरन पर,
      तकदीर सलोने चलते हैं.

      जब जर जर जननी छाती,
      दहक दूध जम जाता है.
      और उजड़ती देख आबरू,
      पल! दो पल थम जाता...आपकी कविता पढ़ी..बहुत अच्छी और सारगर्भित रचना...आप की भाषा और भाव बिल्कुल महान कवियों जैसा है, आपके स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा..

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  17. आपकी प्रशंसा को कोटि कोटि नमन आदरणीय विश्वमोहन जी, आप जैसे विज्ञजन का आशीर्वाद और प्रेरणा मिलती रही ,तो निरंतर लिखने का प्रयास करती रहूंगी । आपको मेरा सादर अभिवादन ..।

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  18. मर्मस्पर्शी रचना जिज्ञासा जी।
    शुभकामनाएँ!

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  19. किसी के घर का कूड़ा किसी के घर में दो वक्त की रोटी की भरपाई करता है हृदय को छू जाने वाली कविता 🙏😭😭😭

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