क्या नया साल है?


हर तरफ़ है ख़ुशी, क्या नया साल है?

झूमती ज़िंदगी, क्या नया साल है?


लोग हैं आ रहे, लोग हैं जा रहे,

धूम है हर गली, क्या नया साल है?


प्रीत के गीत गाएँगे, झूमेंगे मिल,

कह रही दोस्ती, क्या नया साल है?


रात में जो थी, कोहरे की चादर बिछी,

नव किरन झाँकती, क्या नया साल है?


जिनका फुटपाथ पे, आशियाना सजा,

मुनिया पढ़ती दिखी, क्या नया साल है?


झुग्गियों में भी कुछ, झालरें लग रहीं,

आ रही रोशनी, क्या नया साल है?


प्रेम-सौहार्द की एक नौका सजी,

देश में बह रही, क्या नया साल है?


जिज्ञासा सिंह

बढ़ी पहाड़ों पर सर्दी (चौपाई छंद.. बाल साहित्य)

देखो चमके दूर वह शिखर। 

बरफ़ गिरी है उसपे भर-भर॥

बढ़ी पहाड़ों पर है सर्दी।

सेना पहने मोटी वर्दी॥


सरहद-सरहद घूम रही है।

माँ धरती को चूम रही है॥

भेड़ ओढ़कर कंबल बैठी।

बकरी घूमे ऐंठी-ऐंठी॥


याक मलंग जा रहा ऊपर।

बरफ़ चूमती है उसके खुर॥

मैदानों में मेरा घर है।

चलती सुर्रा हवा इधर है॥


टोपी मोज़ा पहने स्वेटर।

काँप रहा पूरा घर थर-थर॥

कट-कट-कट-कट दाँत कर रहे।

जब भी हम घर से निकल रहे॥


हवा शूल बन जड़ा रही है।

कँपना पल-पल बढ़ा रही है॥

करना क्या है सोच रहे हम?

आता कोहरा देख डरे हम॥


ऐसे में बस दिखे रज़ाई।

मम्मी ने आवाज़ लगाई॥

अंदर आओ आग जली है।

गजक साथ में मूँगफली हैं॥


जिज्ञासा सिंह

दाँत से पकड़ा जो आँचल.. गीत


दाँत से पकड़ा जो आँचल


दाँत से पकड़ा जो आँचल 

कह रहा है ढील दे दो,

आज छूना चाहता है

समय के विस्तार को।


पंख पहले से उगे हैं 

है परों में जान अब भी,

माँगता है वह अकिंचन

स्वयं के अधिकार को॥


देखना उसकी किनारी,

खिल रहे हैं फूल अब भी।

खूब कलियाँ आ रही हैं 

ला रही हैं नवल सुरभी।

बस उन्हें नित सींचना है

और सहलाना विनय से,

हो सुगन्धित कर सकेंगे,

भूमि के उद्धार को॥


याद कर लो धूप में वे 

छा गए थे छाँव बनकर।

घेरकर चारों तरफ़ से

एक सुंदर गाँव का घर।

गाँव में वो घर औ घर में

माँ से लिपटे थे हुए,

बस उन्हीं कोमल मनोभावों

को सुंदर प्यार को॥


माँगता है आज जो वह

माँगना पहले उसे था।

पर समय का मूल्य देकर

आसमाँ न चाहिए था।

देके अपनी आरज़ुएँ 

समय को उसने जिया जो

अब चुकाने आ गया वह

समय हर उपकार को॥


जिज्ञासा सिंह

लखनऊ