मेरी ढलती हुई साँसों का सौदा मत करो तुम,
सहस्रों बार रोपा था मैंने साँसों का पौधा ।
तुम आए औ उखाड़े वो मेरा खिलता हुआ गुलशन,
कृत्रिम दुनिया हमें देती रही इतना बड़ा धोखा ।।
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ये आया है तो जाएगा, हराएंगे इसे हम ही,
मनुजता की कसम हमको, न टूटेंगे, न हारेंगे ।
जरा सा संभल लेने दो,अभी है बचपना हममें,
किसी दिन करके दो दो हाथ,इसे रस्ता दिखा देंगे ।।
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अप्रैल माह शुरू होते ही मैंने कोरोना का टीका लगवाने के लिए अपनी डॉक्टर मित्र को फोन लगाया और उससे टीके के बारे में पूरी जानकारी ली, कि हम कब और किस जगह आराम से टीका लगवा सकते हैं,मेरी मित्र ने कहा कि दो तीन दिन रुक जाइए,अभी बहुत भीड़ है, फिर लगवाइए, पतिदेव ने मुझसे कहा प्राइवेट अस्पताल चल के लगवा लेते हैं, पर मुझे अपनी मित्र पे ज्यादा विश्वास था, और मैं दो तीन दिन रुक गई,इसी बीच पतिदेव को जरूरी काम से दिन भर के लिए बाहर जाना पड़ गया, वो पूरी एहतियात के साथ बाहर गए और शाम घर आ गए ।
दूसरे दिन सुबह ही पतिदेव ने मुझसे कहा कि मेरे सिर में दर्द है, मैंने सिरदर्द में जो कुछ भी घरेलू उपाय होते है,उससे दर्द कम करने की कोशिश की,दर्द थोड़ा कम हुआ और वो आराम से ऑफिस चले गए, शाम को लौटे तो उन्होंने कहा कि थोड़ा बुखार लग रहा है,चूँकि वो हल्के फुल्के बुखार या जुकाम में दवा बिलकुल नहीं लेते और ठीक हो जाया करते हैं, मैंने बुखार नापा,नब्बे से थोड़ा ऊपर था, दवा देने की कोशिश की उन्होंने नहीं ली । रात बीत गई,अगले दिन बुखार आने पर मैंने उन्हें साधारण फ्लू की दवा दी,बुखार उतर गया,परंतु फिर शाम को आ गया,इस बार मैने अपने डॉक्टर से पूंछकर फिर दवा दी और उनका बुखार उतर गया, मैने उनका कोविड टेस्ट करवाया, कोविड टेस्ट की रिपोर्ट निगेटिव आई, और हम सब बिलकुल तसल्ली में हो गए, हमने एहतियातन टायफायड टेस्ट करवा लिया,वो रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई,अब हम और तसल्ली में हो गए कि इन्हें कोरोना नहीं है,टायफायड है ।परंतु मैंने घर में सबको अलग अलग कमरे में रहने की हिदायत दे दी और कह दिया कि अगले चार पाँच दिन सब अलग ही रहेंगे ।इधर करीब चार दिन बीतने के बाद पतिदेव को थोड़ी खाँसी शुरू हो गई, मैने उनका दोबारा कोरोना टेस्ट करवाया,उसकी रिपोर्ट दूसरे दिन मिलनी थी ।
उसी शाम बेटे को तेज सिरदर्द हुआ और उसे बुखार आ गया, मैने उसे बुखार की दवा दी बुखार उतर गया,दूसरे दिन सुबह मेरी मेड जो मेरे घर ही रहती है,उसे भी गले में दर्द के साथ बुखार आ गया,शाम को बेटी माथे पे विक्स चुपड़ रही थी मैंने पूछा क्या बात है,वो बिचारी मुझे परेशान देख बोली कुछ नहीं माँ बस थोड़ा दर्द है, मैने बुखार लिया उसे भी बुखार था,मेरे तो होश उड़ गए कि सभी अलग अलग कमरे में बंद थे फिर भी सब को बुखार है, सबको बुखार आता रहा, उतरता रहा,किसी को सौ किसी को एक सौ दो । उधर पतिदेव को चक्कर आना शुरू हो गया, इसी बीच उनकी कोविड की दूसरी रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई,मेरे मामाजी रिटायर्ड डॉ. हैं, मैं हमेशा उन्हीं से चिकित्सकीय परामर्श लेती हूं, पर मैं इस बीमारी को अपने घर के लोगों को नही बताना चाह रही थी, क्योंकि मेरा करीब नजदीकी पचास लोगो का परिवार है,और मैं सबको हाल बता के पागल हो जाती अतः मैंने पतिदेव के भतीजे,जो कि डॉ. है, और उसकी कोविड अस्पताल में ड्यूटी थी, उसी के परामर्श पर अपने पूरे परिवार का इलाज करने की सोची, उसने बताया चूंकि चाचा जी पॉजिटिव हैं,और आप सभी को एक जैसे लक्षण हैं, अतः आप सभी कोविड की चपेट में हैं,आप अगर सबका टेस्ट करवाएंगी तो इलाज में देर हो जाएगी,सबसे पहले इलाज शुरू करिए, उसे सभी की पूरी जानकारी देकर मैंने सबका इलाज घर ही पे शुरू कर दिया और चौबीस घंटे की ड्यूटी के लिए अपने को तैयार किया,पूरे घर में ऊपर नीचे किसी को काढ़ा,किसी को गरारा,किसी को गर्म पानी दे ही रही थी ऊपर से बार बार डॉक्टर से दवा पूँछना,हाल बताना जारी था, हां इस बीच मैं अपनी डॉ. मित्र से भी बराबर संपर्क में रही उन्होंने कहा कि आपका इलाज सही चल रहा है, गनीमत ये रही कि तीनों बच्चों का(मेड भी लड़की है )बुखार तीसरे दिन उतर गया, परन्त मुझे उसी दिन करीब एक सौ दो बुखार चढ़ गया और गले में भयंकर टीस वाला दर्द शुरू हो गया मुझे,पतिदेव और बेटे को गले में बहुत दर्द हुआ ।हम तीनो बराबर खाँसी, और गले के दर्द से जूझ रहे थे, पर दोनो बच्चियां बिलकुल ठीक थीं, मुझे तीन दिन बुखार आया, फिर बुखार उतर गया । अब असली संघर्ष चालू हुआ,किसी को खाँसी, किसी को गले में दर्द, किसी को अजीब सा जुकाम और मुझे तो साँस लेने में तकलीफ होने लगी, हाँ हम बराबर ऑक्सीजन लेबल चेक करते रहे जो कि भगवान की कृपा से सबका सही रहा ।और हमने आठ दिन तक सभी का इलाज डॉक्टर की सलाह पर किया,तब तक हम सभी बुखार और गले में दर्द से थोड़ी राहत पा रहे थे,सभी का स्वाद जा चुका था । अज्ञानतावश पतिदेव को दवा लेने में थोड़ा विलंब हो गया था, जिससे उन्हें बहुत कमजोरी हुई,बहुत चक्कर आया,पर वो झेल ले गए, बेटा,बेटी, और मेरी प्यारी मेड ने बहुत हिम्मत से काम लिया,मेरी सारी बातें मानते हुए मेरा साथ दिया जिससे वो लोग भी अब काफ़ी ठीक हो रहे थे, स्वाद जाने से बच्चे बड़े परेशान हुए,बेटी तो बार बार रोती थी, कि मैने सबसे कहा था कि दूर रहो ।ये सारी बातें आठ अप्रैल से पच्चीस अप्रैल के बीच की हैं ।
मेरी तबियत सबसे बाद में और थोड़ी ज्यादा खराब हुई, शायद मैने वैक्सीन नहीं लगवाई थी या सबको संभालने में थोड़ी लापरवाही हो गई । मैंने अपने ऊपर जो प्रयोग किए वो आप सब मित्रजनों से जरूर साझा करना चाह रही हूँ, मैने चिकित्सक के परामर्श के अनुसार एलोपैथी की पूरी दवा ली,इसके बाद मैने कोरोनिल का कोर्स किया,मुझे कोरोनिल का अणु तेल बहुत फायदा किया उससे मेरा गला साफ हो जाता था, (गला हर दो मिनट में भारी और जकड़ जाता था)और हल्की नींद आ जाती थी,जो कि कई दिनों से आना बंद थी,सबसे बड़ी बात मैं रोज सुबह की निकलती हुई धूप में प्राणायाम जरूर करती थी,हालांकि कैसे किया,वो तो एक दुःस्वपन जैसा है,साँस लेने में नाक गले, सब में गंदा तीखा अजीब दर्द होता था इसके अलावा साँस से जुड़े हल्के और अनेकों व्यायाम किए तथा रोज रात में बीस मिनट टहलती थी, हल्के फुल्के घरेलू नुस्खे भी अपनाए, कुल मिलाकर हम धीरे धीरे ठीक हो गए, कोविड पीरियड में हम शरीर के हर अंग में दर्द तथा कमजोरी की वजह से कुछ भी करने में असमर्थ होते हैं,ऊपर से साँस भी साथ नहीं देती,पर थोड़ा, हल्का प्रयास आख़िर में सफलता का मूलमंत्र बन जाता है,आज सोचती हूँ, तो डर जाती हूँ, कि कैसे हम सब झेलकर बच गए, उस समय का विकट प्रयास हमारे काम आया,और इन्ही सब बातों ने हमें अस्पताल जाने से बचा लिया ।चूँकि उस वक्त अस्पताल तथा ऑक्सीजन सिलेंडर कहीं मिल भी नहीं रहे थे,सब के सब भरे हुए थे, हमने एहतियातन एक सिलेंडर की व्यवस्था भी की।जो बाद में दूसरे के काम आया।
एक बात और, मैंने कोविड के बुखार के बीच बंद कमरे में अपने को स्थिर रखने के लिए रामचरित मानस के भिन्न भिन्न प्रसंगों पर दस छंद लिखे और अपने को मन न होते हुए भी ब्लॉग पर सक्रिय रखा जिससे मुझे अवसाद से बचने में सहायता मिली, इसके अलावा बच्चों ने बहुत सारे तरीके बताए,मेरा बेटा मुझसे बार बार कहता था मां कोविड से दिमाग से खेलो,सोचो मत कुछ भी, पतिदेव तो दिनभर हमारे कमरे में झांकते हुए सबकी कुशल पूछते थे,पर डांट खा जाते थे कि आप ही लाए हो बाहर से, मेरी बेटी थोड़ा ठीक हो गई फिर कभी वो मेरा सिर,कभी पैर मालिश करती कि माँ को नींद आ जाय, अपनी मेड की क्या कहें ? उस बेचारी की मैने पाँच दिन सेवा की और उसने मेरी पंद्रह दिन बहुत सेवा की ।
आप सब मित्रों के नेह और आशीष से हम सभी बिलकुल ठीक हैं, रेणु जी से कई महत्वपूर्ण सलाह मिली, और मैने उस पर अमल भी किया, सच कहूँ तो मेरी लेखनी ने भी मेरा बहुत साथ दिया और हिम्मत दी । ईश्वर से प्रार्थना है, कि इस महामारी का किसी को सामना न करना पड़े ।।
"नेह का बंधन ही असली बंधन है ।
नेह ही धन है,जीवन है ।।
नेह करो अपनों से, परायों से
नेह में डूबा जिसका अंतर्मन है ।।
वह हारता नहीं,जीतता है सदा
जो करता नेह का निर्वहन है" ।।
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शुभकामनाओं सहित.. जिज्ञासा सिंह...