गणपति से प्रार्थना

हे गणपति ! खड़ी मैं तुम्हारे शरण,

आज अपने चरण में, लगा लो प्रभो ।

मेरे जीवन में श्रद्धा का संकल्प हो,
ध्येय करुणा का मुझमें, जगा दो प्रभो ॥

आपके द्वार जो ज्योति जलती सदा,
आज हिरदय में उसको, जला दो प्रभो ॥

हर मनुज के लिए, मन में सद्भाव हो
प्रेम, भक्ति वा आदर, सिखा दो प्रभो ॥

सब सुखी हों न कोई कमी हो कहीं
जग में भावों की नदिया, बहा दो प्रभो ॥

**जिज्ञासा सिंह** 

वाणी तेरे कितने रूप

 

वाणी तेरे कितने रूप 

अंतर्मन का भेद  खोले

छाँवकभी है धूप 


अकड़ खड़ी हो,पड़े मुलायम

शांत,क्षुब्ध हो जाए 

कब किसको बखिया बन सिल दे

कब तुरपन खुल जाए 

सिल बट्टे सी पड़ी रहे

फटके बनकर सूप 


भेद कौन समझा मयूर का 

आज तलक वन में ?

भोर भए जब टेर पुकारे

बस जाए मन में 

उदर गरल से भरा हुआ

भोजन विषधर अनुरूप 


अरी भाग्या मौन बड़ा ही

मौक़े का हथियार 

सत्य सदा प्रतिपादन कर

फिर जाके ले प्रतिकार 

जीवन बिन संघर्षों के हो 

जाता जटिल कुरूप 


**जिज्ञासा सिंह**

उतर गए मन में गहरे श्याम

 

उतर गए मन में गहरे श्याम 

अंतर्मन एक छाया उपजी

देखा तो घनश्याम 

उतर गए मन में गहरे श्याम 


एक दिया अमृत का प्यासा

बूँद-बूँद को तरसे 

बहे पवन संग उड़-उड़ देखे

धरती भी अम्बर से 

पात-पात कण-कण के वासी

रहते चारों याम 

उतर गए मन में गहरे श्याम 


पुत्र बने तुम,सखा बने तुम

प्रियतम मुरली वाले 

चोर बने माखन चोरी की

चरवाह बने,तुम ग्वाले 

माया-मोह मिटायी नटवर

ख़ास से बन गए आम  

उतर गए मन में गहरे श्याम 


भूल गई वो विराट दृश्य 

जो देखा रणभूमि पर 

मानव तन धरि द्वार पधारे

क्या जानूँ हैं गिरधर ?

मन पहचाने चक्षु ना जाने

देखूँ मैं अविराम 

उतर गए मन में गहरे श्याम 


**जिज्ञासा सिंह**

रोटियाँ

 

सेंक लो कुछ रोटियाँ

जलता तवा है 

इस तवे पे सिंक रही

रोटी दवा है 


अजनबी से लोग

कल, जो चुप खड़े थे 

आज वो भी रोटियों

को ले, लड़े थे 

बह रही उनके भी

माफ़िक़ कुछ हवा है 

सेंक लो कुछ रोटियाँ

जलता तवा है 


रोटियाँ ही रोटियों को

खा रही हैं 

कंठ में अँटकी हुई

कुछ जा रही हैं 

दर्द दे जन तंत्र को 

करती रवा है 

सेंक लो कुछ रोटियाँ

जलता तवा है 


एक रोटी चाँद जैसी

दूसरी सोने की है 

तीसरी के द्वार पर 

आवाज़ कुछ रोने की है 

रोटियाँ अमृत हैं 

या होतीं बवा हैं 

सेंक लो कुछ रोटियाँ

जलता तवा है 


**जिज्ञासा सिंह**

राखी आई रे

 

सुंदर रंगबिरंगी हाँ हाँ

सुंदर रंगबिरंगी 

राखी मैं तो लाई रे 

मेरे भैया की सजेगी कलाई रे 


ये देवकी का जाया जो लाल है

और सुभद्रा का कृष्ण गोपाल है

उसके हाथों में आज सजाऊँगी

मैं तो रेशम का धागा लाल लाल है

सखी देखो  शुभ घड़ी आई रे 

मेरे भैया की सजेगी कलाई रे 


प्रेम दीपक जलाने का दिन ये

नेह ममता लुटाने का दिन ये

हल्दी अच्छत का टीका लगाया

रोली चंदन सजाने का दिन ये

लाख संग में दुआएँ लाई रे 

मेरे भैया की सजेगी कलाई रे 


कोई चंदा कहे कोई सूरज

मेरे आँगन रहा है सितार बज

हर रिश्ते से बड़ा है ये रिश्ता

भैया अम्बर पे करे सदा जगमग 

आज रिश्तों में घुलेगी मिठाई रे 

मेरे भैया की सजेगी कलाई रे 


**जिज्ञासा सिंह**