विश्वास करो सब संभव है ।
दुर्गम पथ का हर राही ही
झंझावातों से जूझ, बूझ
हर मार्ग बनाता सौरव है ।।
वो ही पड़ाव पर पहुँचेगा,
अपने तलवों को घिस घिस के ।
दुविधा के छाले फूटेंगे,
हर घाव बहेगा रिस रिस के ।
गूलर की छालें छील पका
जो सरस बनाता अवयव है ।।
जब धीर बढ़े, गंभीर चले,
दोनों कर जुड़े हुए पथ में ।
शाश्वत सत विचरे भाव प्रबल,
बैठे स्थिर दोनो रथ में ।
झाँझर बजती नूपुर गाते,
संग झूम नाचती ये भव है ।।
जो ले विराग का भाव चले,
रूठे है हवाओं की धुन है ।
है धूल धूसरित वातचक्र,
घनघोर अनर्गल गर्जन है ।
थकती जाती मति की गति भी,
पीड़ा का होता उद्भव है ।।
जो था विराट वो हुआ लघू,
हर चोटी को कर गया नमन ।
कैसे क्यों कब उत्तुंग छुए,
कब ठहर गए कब हुआ गमन ।
सब कुछ विस्मृत हो जाता जब,
चहुँ ओर मार्ग दिखता नव है ।।
ये बड़ी प्रबलता का क्षण है,
अपने अंदर की शक्ति संजो ।
जो बरगद जैसा वृक्ष बने,
ऐसे ही बीजों को तू बो ।
खग विहग सजाएँगे दुनिया,
सदियों तक गूँजे कलरव है ।।
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल