और बसंती ऋतु

 

सरगमी धुन 

और बसंती ऋतु।

एकटक हूँ

हो गई हूँ बुत॥


झुंड में लहरों पे उड़ना

चहचहाना चोंच भरना।

एक लय एक तान लेके

फ़लक पे जाके उतरना॥


झूमते-गाते परिंदे

चल दिए मेरी नदी से,

नैन खोले मैं खड़ी

हूँ दृश्य है अद्भुत॥


कूकती कुंजों में कोयल

पीकहां बोला पपीहा।

डोलता मद में भ्रमर

मकरंद भरकर एक फीहा॥

 

पीत वस्त्रों में 

सुसज्जित ये धरा, 

इतरा रही है 

प्रेमरंग में धुत॥


खोल दी हर गाँठ ऋतु ने

दूर तक उजास है।

दिख रहा है उस जहाँ तक 

रंग और उल्लास है॥


धूप दे अपने परों को

चेतना उनमें भरी है,

आज जीना चाहती हूँ

भाव ले अच्युत॥


**जिज्ञासा सिंह**

झूमकर मधुमास आया

 

झूमकर मधुमास आया,

कर गया है पीतमय

बैठ जाओ पास मेरे,

हो गई हूँ गीतमय


झील के उस पार दिखता,

पेड़ जो आधा झुका

डालियों पे बैठ उसके,

गीत जो मैंने लिखा

आज उन गीतों को गाने का,

बड़ा सुंदर समय


बैठ जाओ पास मेरे,

हो गई हूँ गीतमय


नीड़ की डाली से उतरूँ

ठहर जाऊँ छाँव में

हो प्रफुल्लित पुष्प 

चढ़ जाते हमारे पाँव में

चूम लेते रजतकण,

हो लिपट जाते प्रीतमय


बैठ जाओ 

पास मेरे 

हो गई हूँ गीतमय


गुलमोहर की टहनियों से 

लटकती है वल्लरी

चूमते अधरों को कुमकुम 

केसरी रंग रसभरी

कोंपलें खिलने लगीं,

जो थीं अभी तक शीतमय


बैठ जाओ 

पास मेरे 

हो गई हूँ गीतमय


**जिज्ञासा सिंह**

बसंत पंचमी हार्दिक शुभकामनाएँ

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खिचरिया खाएँ श्रीभगवान! ..पद

 

खिचरिया खाएँ श्रीभगवान !

दाल-भात की बनी रे खिचरिया,पूजय सकल सुजान।

प्रात परात सजय हर्दी संग, खूब करय स्नान।

माथ लगे चरनन म छिटके,भिच्छुक पावत दान।

गंग-जमुन-सरयू के तट पर, भूखन की अभिमान।

उदर भरे आतमा तिरोहे, निरधन की वरदान ।

जनम-मरन, सुभ-असुभ की साथी, देत मनुज सम्मान।

बेटी-बधू भरी भरि अँचरा, माँड़व तर गुणगान।

बालक-बृंद सखा सम भावे, भावे वृद्ध जवान।

बिना तालु बिनु दन्तु क भोजन, मनुज गुनन की खान।

खिचरी भोज मनहिं मुदितावे, रोगी रोग निदान।

मकर जोग सखि आजु बनैहैं, खइहैं संग संतान। 

अइसन प्रभु जी भोज बनावा, भावत जगत जहान।

खिचरिया खाएँ श्रीभगवान !


मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ💐


**जिज्ञासा सिंह**

मेरी उड़ गई पतंग

 


मेरी उड़ गई पतंग

देखो आसमाँ के पार 

रेशम डोरी,लाल रंग

होके डोर पे सवार 


जब उड़ी तो बादल झूम गया,

धरती को झुककर चूम गया ,

लहरायी तो लहरों के संग,

लहराता सागर घूम गया 


आया ऋतुओं का मौसम

आई झूम के बहार  

मेरी उड़ गई पतंग

देखो आसमाँ के पार 


वो रंग-बिरंगीं चटकीली,

कुछ सकुचाईकुछ शर्मीली 

जो उड़तीं खोले पर अपने,

दिखती है सुंदर स्वप्नीली 


पीछे पड़ीं पतंगें,

पेच लड़ाने को तैयार 

मेरी उड़ गई पतंग

देखो आसमाँ के पार 


चिड़ियों सी उड़ती जाये वो,

तितली सा रंग सजाए वो 

मैं डोर अगर कस के पकड़ूँ,

फड़के  भागी जाए वो 


वो उड़कर मुझसे जीती,

मैं रुक कर जाती हार।

मेरी उड़ गई पतंग

देखो आसमाँ के पार 


लोहड़ी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ💐💐


**जिज्ञासा सिंह**

हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई

 

फिर मचा है शोरचल हिंदी बचाएँ।

बदलियों में है घिरीसूरज बुलाएँ॥


परखने से काम,अब चलना नहीं है,

समझने का भाव हर मन में जगाएँ॥


अक्षरों की फसल फिर बोनी पड़ेगी,

हैं उगानी वर्णमाला व्यंजनाएँ 


भ्रमित हैं जो दूसरी भाषा से मोहित,

मूल्य अपनी मातृभाषा का बताएँ॥


किस तरह उन्नति मिले नव सृजन को,

ढूँढनी नव राह नव संभावनाएँ॥


**जिज्ञासा सिंह**

दो बालगीत

 


(१)ख़ाली कुर्सी
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घर के आगे बरामदे में

ख़ाली कुर्सी झूल रही है

हिलता उसको छोड़ गए जो

उनकी यादें भूल रही है ॥


कभी हाथ में लिए किताबें

बैठे इसपे दादा जी।

गाँव गए है, मुझसे करके,

फिर आने का वादा भी॥

छड़ी बग़ल में खड़ी हुई

चाट वक्त की धूल रही है ॥


झाँक रहीं आँखों का चश्मा 

बार-बार खिसकाते हाथ।

हर जिज्ञासा-उत्सुकता को

सुलझाते समझाते बात॥

सोच-सोच कर उन यादों को 

मेरी साँसें फूल रही हैं ॥


कितने प्यारे दिन थे मैं था

दादा जी की गोदी में।

डालूँ उँगली उनकी मोटी

हट्टी-कट्टी तोंदी में॥

डाँट, प्यार-झिड़की वाली

मुझे चुभा अब शूल रही है ॥


(२) दादा जी की आदत

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पान सुपारी ख़ाना मेरे

दादाजी की आदत है।

इस आदत से उनकी आती

घर में हरदम शामत है॥


दादी जी दिन भर चिल्लातीं

यहाँ-वहाँ मत थूको।

मसल-मसल कर तम्बाकू

को हवा में यूँ न फूँको॥

ना खाने वालों को होती

इससे दिक़्क़त है॥


सब कहते आदत ख़राब ये

सौ बीमारी होंगी !।

बन जाते हैं धूम्रपान से

लाख तरह के रोगी॥

कान पकड़ लो सभी ज़िंदगी

पर ये घातक है॥


कारण और निवारण सुन

दादाजी जब घबराए।

कान पकड़ कर बोले

कि ये ज़हर न कोई खाये॥

इसको खाने से मर जाती

सारी ताक़त है॥


अब दादा जी नित्य भोर में

सभी को ये समझाते।

धूम्रपान का हर प्राणी,

 को हैं नुक़सान बताते॥

अच्छा ख़ाना, स्वस्थ शरीर

प्रभु की नेमत है॥


**जिज्ञासा सिंह**