भ्रमणकारी पाँव मन के

 

आज मन मेरा 

मुसाफ़िर फिर चला है।

भागता अपने 

मुताबिक़ मनचला है॥


कह रही हूँ मान जा पर

वो मेरी सुनता नहीं है।

भावनाओं की मेरे वो 

कद्र अब करता नहीं है॥


तू वही है पूँछती क्या?

आज उसके लग गले,

जो विषमताओं में 

पग-पग चाहता मेरा भला है।


चुप हुआ जाता है 

मेरे पूँछने पर जाने क्यूँ?

बालपन से आज तक 

रूठा कभी मुझसे न यूँ॥


लाख मन उसका कुरेदूँ

हाथ न आए मेरे।

लग रहा नादानियों ने

फिर मेरी उसको छला है॥


मैं पकड़ पाऊँ न उसको

डोर उसकी दूर तक।

भ्रमणकारी पाँव मन के

भागता है बेधड़क॥


वो चला जाएगा तो कुछ

न बचेगा पास मेरे,

सोचकर घबरा गई 

ये कौन सी उसकी कला है?


मन है मैं हूँ और दूजा

है नहीं कोई यहाँ।

लौट आया फिर भटक कर 

दूर तक जाने कहाँ?


झाँकता आँचल उठा के

दे रहा मुझको तसल्ली।

छोड़कर जाना मुझे सच

में बहुत उसको खला है ॥


**जिज्ञासा सिंह**

सिंहिनी के लाल


सिंहिनी के लाल तुझको है नमन।
शीश पे बाँधे तिरंगे का कफन॥
है नमन है नमन है नमन।
सिंहिनी के लाल तुझ को है नमन॥

तू चढ़े पर्वत, रहे तू कंदरा में,
तू बहे धारा में, उड़ता तू हवा में।
इस धरा की तू संभाले डोर है
हर ख़ुशी तुझसे सुरक्षित है जहाँ में॥
हम तो बस हैं नाम के ही राष्ट्र जन।
है खड़ा चरणों में नतमस्तक वतन॥

ये वतन ये वतन ये वतन।
सिंहिनी के लाल तुझको है नमन॥

तू चला तो चल पड़ा था कारवाँ,
वीरनारी संग बच्चे और माँ।
अश्रु थे सूखे ज़ुबाँ ख़ामोश थी,
तेरे कदमों में झुका था आसमाँ।
दे के क़ुर्बानी बचाया ये चमन।
तेरी यादों में सदा भीगे नयन॥

ये नयन ये नयन ये नयन।
सिंहिनी के लाल तुझको है नमन॥

कर्ज़ हम पर छोड़ कर तू चल दिया,
गर्व करने का हमें है पल दिया।
हम न भूलेंगे तेरे बलिदान को,
ऐ सिपाही देश को नव बल दिया
तुझपे न्योछावर सदा तन और मन।
भारती के वीर धरनी के सजन॥

हाँ सजन हाँ सजन हाँ सजन।
सिंहिनी के लाल तुझको है नमन॥
है नमन है नमन है नमन।
सिंहिनी के लाल तुझ को है नमन॥

**जिज्ञासा सिंह**