मैं जीवन में नित नए अनुभवों से रूबरू होती हूँ,जो मेरे अंतस से सीधे साक्षात्कार करते हैं,उसी साक्षात्कार को कविता के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास है मेरा ब्लॉग, जिज्ञासा की जिज्ञासा
क्षणिकाएँ
जंगली जानवरों का शहर आगमन
नदिया तू तो अम्मा जैसी
टूटा तारा
क्या सावन है
परिस्थिति का मारा
भारत भूमि को मेरा नमन (स्वामी विवेकानंद जी को समर्पित)
जंगल में सावन ( बाल कविता )
नदी सहारा ढूँढ रही (बाढ़ )
झरनों का संगीत
बहरूपिए भिखारी
बचपन के दोस्त
याद करें वो घड़ियाँ,
जब खेलते थे हम ताई की बनाई गुड़ियाँ,
मन की ढेरों यादों से,
अपनी कुछ नन्ही सी यादें चुरा लें ।
चलो...
याद करें वो स्कूल के दिन,
खो खो खेलते,कंचे रखते गिन गिन,
झिलमिलाते कंचों सी,
अपनी यादें रंगीं बना लें ।
चलो...
याद तो होगा ही झूलों पे लम्बी पेंगें लगाना,
हरे लाल गुलाबी दुपट्टों का लहराना,
पत्तियों की न सही कीप से ही,
मनमोहक मेहंदी रचा लें ।
चलो...
याद है मुझे मेरी हर ख़ुशी में तुम्हारा ख़ुश होना,
मेरे छोटे से ग़म में मुझसे पहले रोना,
यादों के मोतियों को पिरो,
माला बना सीने से लगा लें ।
चलो...
दोस्त तो दोस्त होते हैं हमेशा,
कोई रिश्ता नहीं होता उनसा,
साल भर न सही बस एक दो पल ही,
एक दूसरे को आँखों में बसा लें ।
चलो...
**जिज्ञासा सिंह**