एक धागा लाल पीला
जब से राखी बन गया।
हाँ मेरे भैया के हाथों में
तभी से बँध गया॥
नेह में मोती पिरोकर
दीप में किरणें प्रभा की।
आरती वंदन करूँ मैं
नेह की थाली सजा ली॥
प्रेम के उपहार से मेरा
हृदय ही भर गया॥
भाई है विश्वास का
आशा का विस्तृत आसमाँ॥
ज़िन्दगी की विषमता,
ख़ुशियों का मेरे वो जहाँ॥
दे समय पर साथ वो हर
दर्द दुख कम कर गया॥
मूल्य को लेकर चले
धागे का अनुपम सूत ये।
वक्त पर संबल बने
बहनों का रक्षा दूत ये॥
सूत का सम्बन्ध रिश्तों में
मिठाई भर गया॥
जिज्ञासा सिंह