कुछ तो वादा होगा मेरा खुद से ।
खुदगर्जी आच्छादित दर्पी बेखुद से ।।
ऐसे कहाँ बदलती है तल्खी औ तेवर ।
पहने अक्स निहारूँ आभाओं के जेवर ।।
डर ही जाती दिखते दर्पण के ही बुत से ।
ये कैसा है रूप मेरा मुझसे ही निर्मित ।
किन किन मणियों से है दिखता अहम सुशोभित ।
सीधी सरल कुछेक कई हैं अद्भुत से ।।
निरत सदा बहती जो धारा खुद के रस की ।
गर्म सर्द या तीखी, बहे नहीं मधुरस सी ।
यही सोच खटपट करती सुधबुध से ।।
जो पनपा वो बीज जटिल बोझिल कर्कश सा ।
करता वही विनाश, वही विपरीत है आशा ।
छोड़े न जो द्वार हृदय का, लड़े बुद्ध से ।।
मैं से आगे करेगा तू क्या मानव कुछ नव युग में ?
वर दे खुद को करे उजाला दिव्यज्योति का मग में ।
इस नव वर्ष "रहा ये वादा मेरा".. मुझसे ।।
**जिज्ञासा सिंह**
नया साल हम पर, तुम पर, सब पर, मेहरबान हो, यही दुआ है !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (29-12-2021) को चर्चा मंच "भीड़ नेताओं की छटनी चाहिए" (चर्चा अंक-4293) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी सादर प्रणाम🙏
जवाब देंहटाएंरचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका कोटि-कोटि आभार और अभिनंदन । हार्दिक शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह💐💐
खुद के अंदर दीप जले तो ही आदमी का आदमी होना सम्भव.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना.
मगर...
बहुत-बहुत आभार रोहिताश जी ।
हटाएंनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार ज्योति जी। आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंसाहित्यिक रास्तों में यूं ही दिव्य ज्योति करतीं ...
जवाब देंहटाएंऐसे रचनाओं के दीप जलाते हुईं
सुंदर रचना
बहुत-बहुत आभार आपका आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी 👏💐
जवाब देंहटाएंवाह!जिज्ञासा ,बेहतरीन सृजन । नववर्ष मंगलमय हो 💐💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रिय सखी ।
जवाब देंहटाएंनववर्ष में आप गायन में परचम फहराएं💐
यही मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सर नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई🙏🎊🎉
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