मैं जीवन में नित नए अनुभवों से रूबरू होती हूँ,जो मेरे अंतस से सीधे साक्षात्कार करते हैं,उसी साक्षात्कार को कविता के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास है मेरा ब्लॉग, जिज्ञासा की जिज्ञासा
टहनियाँ फूल से भरने लगी हैं.. गीत
टहनियाँ फूल से
भरने लगी हैं
बंजरों की झाड़ काटी
कंटकों की बाड़ छाँटी
मृत पड़ी माटी जगाईं
और कुछ ऐसे जगाईं
मरुधरा विकसित-हरित
खिलने लगी है॥
खुदी का खोदा कुआँ था
पल रहा जिसमें धुआँ था
नीर था संक्रमित दूषित
कमल-शतदल किया रोपित
हर तरफ़ कलियाँ खिलीं
हँसने लगी हैं॥
था जहाँ स्वामित्व रण का
स्वामिनों के अपहरण का
जाल का घेरा घनत्व
छाँट बोए निरत सत्व
राह की पगडंडियाँ
दिखने लगीं हैं॥
जिज्ञासा सिंह
सदस्यता लें
संदेश (Atom)