ज्योति की स्थापना में

 अनुभूति पत्रिका में प्रकाशित गीत

ज्योति की स्थापना में 


प्रज्ज्वलित हों उत्सवित हों

रश्मियाँ संसार की।

भूलना न मन कभी,

अभिकल्पना आधार की॥

निष्कलुष होकर हृदय

निज का लगाना प्रार्थना में।

ज्योति की अभ्यर्थना में॥ 


बच गए गर डूबने से,

मध्य सागर में खड़े।

तारिकाएँ तोड़ लीं जो,

आसमाँ से, बिन उड़े॥

समर्पण-सदभाव-श्रद्धा,

डूब जाना भावना में।

ज्योति की अभ्यर्चना में॥


ज्योति में है रम्यता,

चैतन्यता अभिसार दे।

हो प्रवाहित हृदय में,

धारा दे पारावार दे॥ 

आत्म जागृत, प्राण पोषित,

लीनता दे साधना में।

ज्योति की आराधना में॥


जिज्ञासा सिंह