मां की परछाईं (मेरे पिता जी)


 
मां के गुजरने के बाद पिताजी परछाईं बन गए
मां तो बने ही साथ में चाची ताई बन गए

नहलाया धुलाया कपड़े पहना के तेल भी लगाया
टिफिन तैयार कर टाई सही करते हुए बस में बिठाया
अक्सर ऐसा लगा जैसे दाई बन गए
मां के गुजरने के बाद......

देखते पड़ा हुआ काम जब भी घर का वो
निपटाने में जुट जाते सुबह शाम दोपहर हो
कुछ इस तरह जैसे कामवाली बाई बन गए
मां के गुजरने के बाद.......

हाथ खाली कभी घर आए ही नहीं पिताजी
चने गरम मूंगफली कभी समोसा कभी जलेबी
घर में भी बना बना के खिलाते खिलाते हलवाई बन गए
मां के गुजरने के बाद....

नींद न आने पर लोरियां सुनाते रहे मां की तरह
हूं हूं कह सुनते रहे हमारी हर बात हर आग्रह
हमें बाजुओं में इतना समेटा बिल्कुल रजाई बन गए
मां के गुजरने के बाद...

कई बार कोने में खड़ा उदास देखा है उन्हें मैंने
थके थके से निहारते हों जैसे आइने में
अपने आप में ही डूबे हुए वो एक तनहाई बन गए
मां के गुजरने के बाद....

**जिज्ञासा सिंह**

4 टिप्‍पणियां:

  1. नींद न आने पर लोरियां सुनाते रहे मां की तरह
    हूं हूं कह सुनते रहे हमारी हर बात हर आग्रह
    हमें बाजुओं में इतना समेटा बिल्कुल रजाई बन गए
    मां के गुजरने के बाद...
    निशब्द रह जाती हूँ पढ़कर

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    1. प्रिय सखी,मैं भी आपकी खोजी दिव्यदृष्टि से निःशब्द रह जाती हूँ,आप ने मेरी बहुत प्यारी कविता को खोज लिया,जितना आभार करूँ,कम है,आपको मेरी भावनाओं से जुड़ने के लिए बहुत आदर सहित धन्यवाद ।

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  2. कितनिसुन्दरता से उकेरे वो पल जिसमें पिता माँ के साथ साथ न जाने किस किस रूप में तुम्हारे साथ थे ।भावपूर्ण ।

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  3. आदरणीय दीदी,आपका कितना आभार करूँ कम है,आप लोगों से बहुत कुछ सीख रही हूँ,यह मेरे जीवन की अमूल्य निधि है,जो आपने मेरी मनोभावना को समझा,और मेरी पुरानी पोस्ट पर आकर प्रेरणा दी,आपको मेरा विनम्र नमन।

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