कुछ तो अच्छा होगा ही
नज़र बदल कर देखा
क़दम क़दम पर खड़ी मुसीबत
सुबह शाम होती है हुज्जत
मिलती नहीं किए की क़ीमत
डगर बदल कर देखा
कुछ....
लगा रहा लोगों का मेला
खेल सभी ने मुझसे खेला
बहुत तमाशा हमने झेला
नगर बदल कर देखा
कुछ....
आई आशा भेष बदलकर
अभिलाषा की चुनर ओढ़कर
खड़ी हो गई राह रोक कर
बाँह पकड़ कर देखा
कुछ....
वह बोली जीवन है कहता
दुख सुख आता जाता रहता
सब कुछ बुरा नहीं हो सकता
सोच बदल कर देखा
कुछ....
खुली आँख से जो कुछ देखा
वही बना ली जीवनरेखा
बाक़ी सब कर के अनदेखा
आगे बढ़ कर देखा
कुछ....
**जिज्ञासा**
नजरिया बदलकर देखना ही पड़ता है हर भले-बुरे को
जवाब देंहटाएंआगे बढ़कर निकलना ही होता है हर हाल को छोड़कर
बहुत सुन्दर
आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया..सादर नमन..
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-01-2021) को "हो गया क्यों देश ऐसा" (चर्चा अंक-3952) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका आभार व्यक्त करती हूँ..सादर शुभकामनायें..
हटाएंबहुत सुंदर, बहुत प्रेरक ग़ज़ल है यह जिज्ञासा जी । सच है कि नज़र बदलने से ही नज़ारे बदलते हैं । अभिनंदन आपका ऐसी ग़ज़ल लिखने के लिए जो पढ़ने वालों की आंखें खोल दे ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया से मुग्ध हूँ एवं ब्लॉग पर आपके आपके निरंतर स्नेह की आभारी हूँ..
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 20 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्रिय पम्मी जी,"पाँच लिंकों का आनन्द पर" मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया एवं आभार व्यक्त करती हूँ..सादर शुभकामना सहित जिज्ञासा सिंह..
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार, जोशी जी, सादर नमन..
हटाएंखुली आँख से जो कुछ देखा
जवाब देंहटाएंवही बना ली जीवनरेखा
बाक़ी सब कर के अनदेखा
आगे बढ़ कर देखा
कुछ....
मनोदशा को चित्रित करती बहुत सुंदर रचना 🌹🙏🌹
बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय शरद जी.. सादर नमन..
हटाएंसुंदर सार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय अनीता जी.. सादर नमन..
हटाएंबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंवाह! बेहतरीन सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता जी..आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी को नमन है..
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शान्तनु जी ..सादर नमन..
हटाएंएक बदला हुआ नजरिया, एक कान बदलती बात......कितना कुछ बदल देते हैं
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रतिक्रिया के लिए आपका सादर नमन गगन जी..
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआदरणीय सिन्हा जी, आपका बहुत बहुत आभार..सादर नमन..
हटाएंसोच बदल कर देखो ...
जवाब देंहटाएंयूँ तो हर बात पे सोच बदलने का कुछ तो असर होता है ...
दिगम्बर जी,बहुत बहुत आभार..सादर नमन..
हटाएंवह बोली जीवन है कहता
जवाब देंहटाएंदुख सुख आता जाता रहता
सब कुछ बुरा नहीं हो सकता
सोच बदल कर देखा
कुछ....
सुन्दर सृजन.....
बहुत बहुत धन्यवाद विकास जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन करती हूँ..सादर..
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 21 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंखुली आँख से जो कुछ देखा
जवाब देंहटाएंवही बना ली जीवनरेखा
बाक़ी सब कर के अनदेखा
आगे बढ़ कर देखा
कुछ....//
नज़र बदलती है तो नजारा भी बदल जाता है | सुंदर सृजन प्रिय जिज्ञासा जी |जो जीवन दर्शन में परिवर्तन का पक्षधर है |सस्नेह शुभकामनाएं|
नज़रिया बदल कर देखने से बहुत कुछ स्पष्ट दिखने लगता है ।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति