सत्य का नेतृत्व


नेतृत्व सत्य का कठिन कर्म

कह जाता मानव हृदय मर्म


खुल जाता मन का कठिन द्वार

सच कर देता उर का श्रिंगार


फिर पैदा होता वीर पुरूष

कर लेता जो ख़ुद पर अंकुश


कोई कैसा फिर हो समक्ष?

सच कहने में जो महा दक्ष


कमज़ोर नहीं वो हो सकता

जिसमें सच कहने की क्षमता


है सत्य सदा स्पष्ट अटल

है सूक्ष्म मगर फिर भी अविरल


सच में है छुपा एक आकर्षण

कहने में होता अति घर्षण


पर होती सच की सदा विजय

खिल जाता है भय मुक्त हृदय


 **जिज्ञासा**

25 टिप्‍पणियां:

  1. कमज़ोर नहीं वो हो सकता
    जिसमें सच कहने की क्षमता
    -------------------
    जी..बहुत खूब लिखा है। सही कहा है।

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    1. जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपका वीरेन्द्र जी, आपकी प्रशंसा को नमन है..

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 18 जनवरी 2021 को 'यह सरसराती चलती हाड़ कँपाती शीत-लहर' (चर्चा अंक-3950) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. रवीन्द्र जी,नमस्कार! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हृदय से अभिनंदन करती हूँ..सादर शुभकामना सहित जिज्ञासा सिंह..

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद ओंकार जी.. आपको मेरा सादर अभिवादन..

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    1. अनुराधा जी,नमस्कार ! प्रशंसनीय टिप्पणी को नमन करती हूँ..

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    1. आदरणीय शास्त्री जी,नमस्कार ! आपकी स्नेह की आभारी हूँ..सादर..

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  7. सच का साथ देना भी कोई आसान काम नहीं है ! सुंदर रचना

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  8. जी,सच कहा है आपने गगन जी, आपकी प्रशंसा को नमन है सादर..

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  9. सच में है छुपा एक आकर्षण
    कहने में होता अति घर्षण

    पर होती सच की सदा विजय
    खिल जाता है भय मुक्त हृदय

    बहुत सुंदर रचना जिज्ञासा सिंह जी 🌹🙏🌹

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद शरद जी, आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी का तहेदिल से स्वागत है..

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  10. पर होती सच की सदा विजय

    खिल जाता है भय मुक्त हृदय, बहुत ही सुन्दर व दिव्यता बिखेरती रचना।

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    1. शांतनु जी आपका तहेदिल से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर..

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  11. बेहतरीन सृजन आदरणीय दी।
    सादर

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    1. प्रिय अनीता जी, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया..सादर नमन..

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  12. सच में सत्य का बल अपरिमित होता है बस समय आते ही उजागर होता है।
    बहुत सुंदर! शाश्र्वत भाव लिए अभिनव सृजन जिज्ञासा जी।

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  13. आपकी सुन्दर सराहनीय टिप्पणी का हृदय की गहराई से स्वागत करती हूँ..सादर नमन..

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  14. बहुत बढ़िया रचना। बधाई और आभार!!!

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    1. विश्वमोहन जी,प्रशंसनीय प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार..सादर नमन..

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  15. आदरणीय सिन्हा जी, आपका बहुत बहुत आभार..सादर नमन..

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  16. बहुत अच्छी, बहुत प्रेरक कविता है यह आपकी जिज्ञासा जी । सादर वंदन एवं अभिनन्दन ।

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