मुझे डांटे जा रही हो बराबर
माँ ! जरा भाई को भी कुछ कहो
घूमता रहता है इधर
तुम्हें हर वक़्त शिकायत रहती है मुझसे
परेशान हो गई हूँ तुम्हारी रोज़ की हिदायत से
मेरा कद बढ़ रहा है जैसे जैसे
मुझ पर नजर रख रही हो वैसे वैसे
मैं क्या कोई वस्तु हूँ जो लुट जाऊँगी
सच कहती हूँ माँ, तुम्हें नीचा नहीं दिखाऊंगी
भरोसा तो रखो अपनी बेटी पर
टांग दो पुरानी रवायतों को उन्हीं की खूँटी पर
आखिर मेरा भी अस्तित्व है अपना कोई
तुम्हारे सामने मैं इन बातों पे कितनी बार रोई
फिर भी पड़ी रहती हो पीछे मेरे
क्यूँ बनाती हो हमारे लिए चक्रव्यूह जैसे घेरे
कभी सोचा है आपने और आपके समाज ने
आपकी दादी ने,नानी ने,आपकी माँ ने और आप ने
पुरुष तो पुरुष हैं पर आप लोग भी नहीं कम हैं
आप जैसी स्त्रियाँ अपनी ही बेटी की दुश्मन हैं
अब मुझे मेरे हाल पर छोड़ो , सम्भाल लूँगी स्वयं को
मेरा वादा है, नहीं तोड़ूँगी मैं तुम्हारी किसी कसम को
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल
बालिका के मन की पीड़ा उभर आई है आपके इन शब्दों में जिज्ञासा जी । आशा है, समाज और परिवारों की मानसिकता धीरे-धीरे ही सही, सही दिशा में परिवर्तित होगी एवं भविष्य की बालिकाओं को ऐसी पीड़ा नहीं सहनी पड़ेगी । आभार एवं अभिनंदन आपका ।
जवाब देंहटाएंहौसला बढ़ाती आशातीत प्रशंसा के लिए आपका असंख्य आभार..आपको मेरा सादर अभिवादन..
हटाएंकायदों में जकड़ी एक मासूम के दिल की व्यथा-कथा
जवाब देंहटाएंआपकी सुलभ सरस टिप्पणी से अभिभूत हूँ..आपको मेरा सादर अभिवादन आदरणीय अनिता जी..
हटाएंसार्थक और सुन्दर रचना।
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गणतन्त्र दिवस की पूर्वसंध्या पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार ! उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार..
हटाएंशास्त्री जी आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ..जिज्ञासा सिंह..
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-1-21) को "यह गणतंत्र दिवस हमारे कर्तव्यों के नाम"(चर्चा अंक-3958) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
प्रिय कामिनी जी, मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका हृदय से अभिनंदन करती हूँ. गणतंत्र दिवस की असंख्य शुभकामनाओं सहित आपको नमन और वंदन..सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह ..
हटाएंएक समान उड़ान दो.. रहन सहन खानपान दो..
जवाब देंहटाएंसीख दो सम्मान की..त्याग संग अधिकार की..
नाम हो मुकम्मल सा..जिंदगी ना उधार सी..
मुझे ना डर,स्थापित प्रतिमान दो..
विविधता मैं जीवन की मात्र..
जीवन ना मुझे तुम असमान दो..
आपको समर्पित..
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ..उससे भी खूबसूरत समर्पण का मनोभाव..प्रिय मित्र आपको गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ..सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह..
जवाब देंहटाएंसार्थक और सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबधाई
बहुत बहुत आभार आदरणीय..गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..
जवाब देंहटाएंसुंदर सामयिक रचना! 24 जनवरी को बेटी दिवस पर सार्थक रचना!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका आदरणीय..आपको मेरा सादर अभिवादन..
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