किसी के होंठ पे दिखती न मुझको वो खुशी है
जिसे चंद रोज़ पहले हमने तुमने की थी साझा
वो जा के दरमियाने सात परतों के छिपी है ।
झांककर देखती हूं,आज मैं धीरे से दर्पण
हैं फिर भी दिख रही सिकुड़न, जो माथे पे खिंची है
मेरे मन में वहम और शक की सुइयां चुभ रही हैं
करूं क्या डर के मारे, नींद मेरी उड़ चुकी है
वो कहते हैं करो विश्वास अपने आप पर तुम
मगर जुड़ती नहीं चटकी, जो टूटी सी कड़ी है
किसी आहट पे आंखें ढूँढती हैं कोई अपना
पर अनजानी सी दस्तक से ये दुनिया ही डरी है
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 26 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी,प्रणाम !
हटाएंमेरी रचना के चयन के लिए आपका कोटि कोटि आभार एवम आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं एवम नमन ।
किसी आहट पे आँखें ढूँढती हैं कोई अपना
जवाब देंहटाएंपर अनजानी सी दस्तक से ये दुनिया ही डरी है।
बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति, जिज्ञासा दी।
बहुत बहुत आभार ज्योति जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन ।
हटाएंकिसी आहट पे आँखें ढूँढती हैं कोई अपना
जवाब देंहटाएंपर अनजानी सी दस्तक से ये दुनिया ही डरी है
कोरोना रुपी अनजानी दस्तक से शीघ्रातिशीघ्र निजात मिले समस्त संसार को यही प्रार्थना है । हृदयस्पर्शी सृजन जिज्ञासा जी ।
मीना जी आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं, ब्लॉग पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणी का आदर करती हूं, आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंदर्द के गीत, स्वतः प्रवाह होता हुआ।।।।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद आदरणीया
आपका बहुत बहुत आभार पुरषोत्तम जी,सादर नमन ।
हटाएंकिसी आहट पे आंखें ढूँढती हैं कोई अपना
जवाब देंहटाएंपर अनजानी सी दस्तक से ये दुनिया ही डरी है
ये दस्तक तो दिलों में घर कर गई है जिज्ञासा जी,मगर अभी दर्द और डर की नहीं हिम्मत और ख़ुशी की जरूरत है ताकि जो बचे है उन्हें बचाया जा सके।
सकारात्मकता और सतर्कता ही निवारण है,सादर नमन आपको
प्रिय कामिनी जी,आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया दिल को छू गई, सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंवाह👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम जी ।
हटाएंये जो फासले बन गयें हैं बीते कुछ वक़्त में, इन्हें पाटने में बहुत लम्बा अर्सा लगेगा! एक आस ही है जो सबको साहस देगी वास्त्विकता से सामना करने का और एक दूसरे से सहानुभूती रखने का, नहीं तो ये ऐसा समय है की अपने भी साथ देने से पहले, दो बार सोचने लग जा रहे हैं!
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच कहा भावना जी आपने,आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन है ।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26 -5-21) को "प्यार से पुकार लो" (चर्चा अंक 4077) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
कामिनी जी, नमस्कार !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
समसामयिक रचना है, साधुवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनुपमा जी ।
जवाब देंहटाएंवाह क्या खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार सुजाता जी,ब्लॉग पर आने के लिए आपका हार्दिक स्वागत करती हूं,सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंझांककर देखती हूं,आज मैं धीरे से दर्पण
जवाब देंहटाएंहैं फिर भी दिख रही सिकुड़न, जो माथे पे खिंची है
स्वयं से एक स्पष्ट संवाद। भावों की सुघट अभिव्यक्ति।
सुन्दर सराहनीय टिप्पणी के लिए आपका बहुत धन्यवाद प्रवीण जी,आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंदर्द, संताप, पीड़ा, संदेह, आशंका भरे इस माहौल में दिल के भावों को शिद्दत से महसूस करके लिखी गई रचना, इसी पीड़ा से कोई न कोई हल निकलेगा
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी,आपकी सटीक प्रतिक्रिया हमेशा मनोबल बढ़ाती है, सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंसही कहा आपने। इस समय लगभग सभी ने किसी न किसी अपने को खोया है ऐसे में खुशी के गीत लिखना असंभव ही है।
जवाब देंहटाएंकविता का भाव समझ, आत्मीय प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंकिसी आहट पे आंखें ढूँढती हैं कोई अपना
जवाब देंहटाएंपर अनजानी सी दस्तक से ये दुनिया ही डरी है
𝗛𝗲𝗮𝗿𝘁 𝘁𝗼𝘂𝗰𝗵𝗶𝗻𝗴 𝗹𝗶𝗻𝗲 ❤❤❤❤❤
बहुत बहुत आभार प्रिय मनीषा जी, आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।
हटाएंआज हर इंसान बस मन में संताप , एक डर ले कर जी रहा है ।
जवाब देंहटाएंअपने आप में अकेला से , और ये अकेलापन सबको धीरे धीरे निगल रहा है ।
सबके मन की बात कह दी है जिज्ञासा तुमने ।
सस्नेह
आदरणीय दीदी,आपका बहुत बहुत आभार,आपकी टिप्पणी को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंबहुत सुंदर ! पर विश्वास रखिए, सुबह जरूर आएगी
जवाब देंहटाएंआपने सच कहा गगन जी, आशा ही जीवन है । आपका बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंवो कहते हैं करो विश्वास अपने आप पर तुम
मगर जुड़ती नहीं चटकी, जो टूटी सी कड़ी है
सही कहा सारा आत्मविश्वास चकनाचूर है इन दिनों ...
बहुत ही लाजवाब भावपूर्ण सृजन
वाह!!!
बहुत आभार सुधा जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।
हटाएंकिसी आहट पे आंखें ढूँढती हैं कोई अपना
जवाब देंहटाएंपर अनजानी सी दस्तक से ये दुनिया ही डरी है
लाजवाब
बहुत आभार मनोज जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन करती हूं ।
हटाएंवो कहते हैं करो विश्वास अपने आप पर तुम
जवाब देंहटाएंमगर जुड़ती नहीं चटकी, जो टूटी सी कड़ी है---वाह बहुत गहरी पंक्तियां हैं जिज्ञासा जी।
बहुत बहुत आभार संदीप जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।
हटाएंअपनों के बिछुड़ने का डर, उनसे ना मिल पाने की बंदिशें, आर्थिक समस्याएँ,उदासी,अवसाद, अकेलापन, बच्चों की पिछड़ती शिक्षा, सबसे बढ़कर एक अनिश्चितता की जिस स्थिति में आज हम जी रहे हैं, उसने उत्साह और खुशी को भी मार डाला है। आपकी कविता में आज के दौर के मनुष्य की इसी घुटन की सटीक अभिव्यक्ति हुई है।
जवाब देंहटाएंमीना जी,आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया मन के मर्म को छू गई,निरंतर मिलते स्नेह की आभारी हूं,सादर नमन ।
हटाएंझांककर देखती हूं,आज मैं धीरे से दर्पण
जवाब देंहटाएंहैं फिर भी दिख रही सिकुड़न, जो माथे पे खिंची है
बहुत ही मार्मिक संवाद प्रिय जिज्ञासा जी |मायूसी से भरे मनके उदगार जो आज की विपरीत परिस्थितियों का दर्पण है |बहुत गहनता से विश्लेष्ण करती है रचना |
प्रिय रेणु जी,आपकी प्रतिक्रिया आंखें खोजती रहती हैं, आपका दिल से आभार ।
जवाब देंहटाएंदुनिया तो सचमुच में बहुत डरी हुई है। बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अरुण जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जिज्ञासा जी! एक एक बंध गहन अनुभूति लिए है।
जवाब देंहटाएंसच आज के हालात ऐसे ही हैं ।
अप्रतिम भावाभिव्यक्ति।
आपकी प्रशंसा कविता को सार्थक बना गई,आपका बहुत बहुत आभार कुसुम जी ।
जवाब देंहटाएं