खुशी के गीत

लिखूं कैसे खुशी के गीत, मन मेरा दुखी है
किसी के होंठ पे दिखती न मुझको वो खुशी है

जिसे चंद रोज़ पहले हमने तुमने की थी साझा
वो जा के दरमियाने सात परतों के छिपी है ।

झांककर देखती हूं,आज मैं धीरे से दर्पण
हैं फिर भी दिख रही सिकुड़न, जो माथे पे खिंची है

मेरे मन में वहम और शक की सुइयां चुभ रही हैं
करूं क्या डर के मारे, नींद मेरी उड़ चुकी है

वो कहते हैं करो विश्वास अपने आप पर तुम
मगर जुड़ती नहीं चटकी, जो टूटी सी कड़ी है

किसी आहट पे आंखें ढूँढती हैं कोई अपना
पर अनजानी सी दस्तक से ये दुनिया ही डरी है

**जिज्ञासा सिंह**

46 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 26 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीय दीदी,प्रणाम !
      मेरी रचना के चयन के लिए आपका कोटि कोटि आभार एवम आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं एवम नमन ।

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  2. किसी आहट पे आँखें ढूँढती हैं कोई अपना
    पर अनजानी सी दस्तक से ये दुनिया ही डरी है।
    बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति, जिज्ञासा दी।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन ।

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  3. किसी आहट पे आँखें ढूँढती हैं कोई अपना
    पर अनजानी सी दस्तक से ये दुनिया ही डरी है
    कोरोना रुपी अनजानी दस्तक से शीघ्रातिशीघ्र निजात मिले समस्त संसार को यही प्रार्थना है । हृदयस्पर्शी सृजन जिज्ञासा जी ।

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    1. मीना जी आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं, ब्लॉग पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणी का आदर करती हूं, आपको मेरा सादर नमन ।

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  4. दर्द के गीत, स्वतः प्रवाह होता हुआ।।।।
    साधुवाद आदरणीया

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    1. आपका बहुत बहुत आभार पुरषोत्तम जी,सादर नमन ।

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  5. किसी आहट पे आंखें ढूँढती हैं कोई अपना
    पर अनजानी सी दस्तक से ये दुनिया ही डरी है

    ये दस्तक तो दिलों में घर कर गई है जिज्ञासा जी,मगर अभी दर्द और डर की नहीं हिम्मत और ख़ुशी की जरूरत है ताकि जो बचे है उन्हें बचाया जा सके।
    सकारात्मकता और सतर्कता ही निवारण है,सादर नमन आपको

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  6. प्रिय कामिनी जी,आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया दिल को छू गई, सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।

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  7. ये जो फासले बन गयें हैं बीते कुछ वक़्त में, इन्हें पाटने में बहुत लम्बा अर्सा लगेगा! एक आस ही है जो सबको साहस देगी वास्त्विकता से सामना करने का और एक दूसरे से सहानुभूती रखने का, नहीं तो ये ऐसा समय है की अपने भी साथ देने से पहले, दो बार सोचने लग जा रहे हैं!

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    1. बिल्कुल सच कहा भावना जी आपने,आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन है ।

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  8. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26 -5-21) को "प्यार से पुकार लो" (चर्चा अंक 4077) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  9. कामिनी जी, नमस्कार !
    मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  10. समसामयिक रचना है, साधुवाद।

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  11. बहुत बहुत शुक्रिया अनुपमा जी ।

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  12. वाह क्या खूबसूरत प्रस्तुति।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार सुजाता जी,ब्लॉग पर आने के लिए आपका हार्दिक स्वागत करती हूं,सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।

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  13. झांककर देखती हूं,आज मैं धीरे से दर्पण
    हैं फिर भी दिख रही सिकुड़न, जो माथे पे खिंची है

    स्वयं से एक स्पष्ट संवाद। भावों की सुघट अभिव्यक्ति।

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    1. सुन्दर सराहनीय टिप्पणी के लिए आपका बहुत धन्यवाद प्रवीण जी,आपको मेरा सादर नमन ।

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  14. दर्द, संताप, पीड़ा, संदेह, आशंका भरे इस माहौल में दिल के भावों को शिद्दत से महसूस करके लिखी गई रचना, इसी पीड़ा से कोई न कोई हल निकलेगा

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    1. आदरणीय दीदी,आपकी सटीक प्रतिक्रिया हमेशा मनोबल बढ़ाती है, सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।

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  15. सही कहा आपने। इस समय लगभग सभी ने किसी न किसी अपने को खोया है ऐसे में खुशी के गीत लिखना असंभव ही है।

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  16. कविता का भाव समझ, आत्मीय प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद एवम वंदन ।

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  17. किसी आहट पे आंखें ढूँढती हैं कोई अपना
    पर अनजानी सी दस्तक से ये दुनिया ही डरी है
    𝗛𝗲𝗮𝗿𝘁 𝘁𝗼𝘂𝗰𝗵𝗶𝗻𝗴 𝗹𝗶𝗻𝗲 ❤❤❤❤❤

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय मनीषा जी, आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।

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  18. आज हर इंसान बस मन में संताप , एक डर ले कर जी रहा है ।
    अपने आप में अकेला से , और ये अकेलापन सबको धीरे धीरे निगल रहा है ।
    सबके मन की बात कह दी है जिज्ञासा तुमने ।
    सस्नेह

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    1. आदरणीय दीदी,आपका बहुत बहुत आभार,आपकी टिप्पणी को हार्दिक नमन एवम वंदन ।

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  19. बहुत सुंदर ! पर विश्वास रखिए, सुबह जरूर आएगी

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  20. आपने सच कहा गगन जी, आशा ही जीवन है । आपका बहुत बहुत आभार ।

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  21. वो कहते हैं करो विश्वास अपने आप पर तुम
    मगर जुड़ती नहीं चटकी, जो टूटी सी कड़ी है
    सही कहा सारा आत्मविश्वास चकनाचूर है इन दिनों ...
    बहुत ही लाजवाब भावपूर्ण सृजन
    वाह!!!

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    1. बहुत आभार सुधा जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।

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  22. किसी आहट पे आंखें ढूँढती हैं कोई अपना

    पर अनजानी सी दस्तक से ये दुनिया ही डरी है

    लाजवाब

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    1. बहुत आभार मनोज जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन करती हूं ।

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  23. वो कहते हैं करो विश्वास अपने आप पर तुम
    मगर जुड़ती नहीं चटकी, जो टूटी सी कड़ी है---वाह बहुत गहरी पंक्तियां हैं जिज्ञासा जी।

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    1. बहुत बहुत आभार संदीप जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।

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  24. अपनों के बिछुड़ने का डर, उनसे ना मिल पाने की बंदिशें, आर्थिक समस्याएँ,उदासी,अवसाद, अकेलापन, बच्चों की पिछड़ती शिक्षा, सबसे बढ़कर एक अनिश्चितता की जिस स्थिति में आज हम जी रहे हैं, उसने उत्साह और खुशी को भी मार डाला है। आपकी कविता में आज के दौर के मनुष्य की इसी घुटन की सटीक अभिव्यक्ति हुई है।

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    1. मीना जी,आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया मन के मर्म को छू गई,निरंतर मिलते स्नेह की आभारी हूं,सादर नमन ।

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  25. झांककर देखती हूं,आज मैं धीरे से दर्पण
    हैं फिर भी दिख रही सिकुड़न, जो माथे पे खिंची है
    बहुत ही मार्मिक संवाद प्रिय जिज्ञासा जी |मायूसी से भरे मनके उदगार जो आज की विपरीत परिस्थितियों का दर्पण है |बहुत गहनता से विश्लेष्ण करती है रचना |

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  26. प्रिय रेणु जी,आपकी प्रतिक्रिया आंखें खोजती रहती हैं, आपका दिल से आभार ।

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  27. दुनिया तो सचमुच में बहुत डरी हुई है। बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  28. बहुत सुंदर जिज्ञासा जी! एक एक बंध गहन अनुभूति लिए है।
    सच आज के हालात ऐसे ही हैं ।
    अप्रतिम भावाभिव्यक्ति।

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  29. आपकी प्रशंसा कविता को सार्थक बना गई,आपका बहुत बहुत आभार कुसुम जी ।

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