तू अडिग अविचल मनुज, फिर है भला बेचैन क्यूँ ?
सुस्त पड़ती धमनियां और अश्रु बहते नैन क्यूँ ?
दर्द में डूबे हुए हर एक नारी और नर ।
आसमाँ भी रो रहा और मेघ बरसें तड़पकर ।।
तूने सागर को मथा,तू चढ़ गया,उत्तुंग गिरि पर ।
प्रस्तरों को काट डाला, उड़ रहा अंतरिक्ष ऊपर ।।
है नहीं कोई जगह,पहुँची न हो तेरी कला ।
फिर तुम्हें है साधती क्यों काल बनकर ये बला ?
सोचकर देखो कदम डगमग हुए थे कब तुम्हारे ।
और पेशानी पे थी चमकी, कब पसीने की व्यथा रे ।।
दूसरों के दर्द में तू पकड़ माथा,कब था रोया ।
किस घड़ी करके मशक्कत, तूने ऐसा बीज बोया ।।
जिस विटप की छाँव, तू बैठे गिने गुण और अवगुण ।
जीतना है आज तुझको, खुद से लड़के आज ये रण ।।
मन का रण ये,तन का रण ये, धन का है ये महायुद्ध ।
है विचारों से भी लड़ना, कौन है इतना प्रबुद्ध ।।
श्वाँस का घर्षण छिड़े,छाए व्यथा हर अंग में ।
रोंया रोंया टूटता, कालिख पुती हर रंग में ।।
हर तरफ फैली विफलता,हर तरफ आक्रोश जैसा ।।
फिर भला कैसे संवारें देश, औ श्रृंगार कैसा ?
क्यों न हम फिर से सहेजें, मूल्य और अपनी धरोहर ।
पहले अपना घर संवारें, फिर चढ़ें हम चाँद पर ।।
क्यों न हम कुछ बीज बोएं और उगाएं वृक्ष ऐसे ।
साँसों की फिर सौदेबाजी, कर न पाए कोई हमसे ।।
है उठे ये प्रश्न मन में, मित्र कुछ ऐसे बनाएँ ।
जीने की जिनमें कला हो, दुख पड़े तो पूँछ जाएँ ।।
कह सकें जिनसे सदा,मन की कठिन दारुण कथा ।
दूर से ही समझ ले जो, मेरे हिरदय की व्यथा ।।
वरना अर्थी जब उठेगी, कुछ न होगा हाथ में ।
अश्रु में न नैन डूबे, न ही कोई साथ में ।।
**जिज्ञासा सिंह**
अंतिम पंक्तियों में यथार्थ कह दिया आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशवंत जी,आपको मेरा सादर अभिवादन ।
हटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसराहनीय टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार शिवम जी ।
हटाएंसमसामयिक रचना ,कुछ प्रश्न और उत्तर भी ,मर्मस्पर्शी एवं सारगर्भित !उत्कृष्ट सृजन हेतु साधुवाद !
जवाब देंहटाएंअनुपमा जी, नमस्कार !
हटाएंआपका और आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत करती हूं, बहुत बहुत आभार ।
क्यों न हम फिर से सहेजें, मूल्य और अपनी धरोहर ।
जवाब देंहटाएंपहले अपना घर संवारें, फिर चढ़ें हम चाँद पर ।।
क्यों न हम कुछ बीज बोएं और उगाएं वृक्ष ऐसे ।
साँसों की फिर सौदेबाजी, कर न पाए कोई हमसे ।।
जिज्ञासा दी, आज हर संवेदनशील इंसान के मन मे यही सवाल उठ रहे है। बहुत सुंदर।
जी,बिलकुल सही कहा ज्योति जी आपने, आपका हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंआपकी अंतिम पंक्तियों ने सब कुछ कह दिया है माननीया जिज्ञासा जी। बहुत अच्छी रचना है यह आपकी।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी, आपकी सुंदर टिप्पणी मेरे लिए प्रेरणा है,आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंजिज्ञासा ,
जवाब देंहटाएंजिन क्षणों को तुमने जिया है , जो कुछ तुमने अनुभव किया है , उसके बाद एक प्रबुद्ध के मन में ऐसे प्रश्न और उसके निदान आना स्वाभाविक था । कितनी सारी बस्ते तुमने अपनी इस रचना में गेयता के साथ उठायी हैं ।
बाहर बहुत सुंदर और सार्थक रचना ।
आदरणीय दीदी,आपका बहुत बहुत आभार, सच वो बीमारी का समय बड़ी ही निर्ममता से हर तरह के दर्द देता है, जो समेटना असंभव सा लगता है,आप सबका स्नेह है, कि कुछ लिख पा रही हूं,सादर नमन ।
हटाएंश्वाँस का घर्षण छिड़े,छाए व्यथा हर अंग में ।
जवाब देंहटाएंरोंया रोंया टूटता, कालिख पुती हर रंग में ।।
हर तरफ फैली विफलता,हर तरफ आक्रोश जैसा ।।
फिर भला कैसे संवारें देश, औ श्रृंगार कैसा ?
क्यों न हम फिर से सहेजें, मूल्य और अपनी धरोहर ।
पहले अपना घर संवारें, फिर चढ़ें हम चाँद पर ।।---वाह वाह...। क्या खूब रचना है, प्रेरित करती हुई और मौजूदा वक्त पर चिंतन को विवश करती हुई। खूब बधाई जिज्ञासा जी।
संदीप जी,आपकी प्रेरणा देती हुई टिप्पणी को सादर नमन ।
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा, तुम्हारा यह सन्देश हमारे नेताओं तक अवश्य पहुंचना चाहिए.
जी सर,कोशिश तो जारी है, आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंसच कोरोना एक बहुत बड़ा सबक है सबके लिए, जीवन कैसे सार्थक बने, यह सोचना-समझना है, वर्ना सच कहाँ आपने कि
जवाब देंहटाएंवरना अर्थी जब उठेगी, कुछ न होगा हाथ में ।
अश्रु में न नैन डूबे, न ही कोई साथ में ।।
आपका बहुत बहुत आभार कविता जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंबहुत सार्थक संदेश देती कविता!!!
जवाब देंहटाएंविश्वमोहन जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (21-05-2021 ) को 'मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये' (चर्चा अंक 4072 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
मेरी रचना के चयन के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय रवीन्द्र जी, सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक सृजन 👌👌
जवाब देंहटाएंअनुराधा जी आपका बहुत बहुत आभार ।
हटाएंकह सकें जिनसे सदा,मन की कठिन दारुण कथा ।
जवाब देंहटाएंदूर से ही समझ ले जो, मेरे हिरदय की व्यथा ।।
बहुत सुंदर सृजन, जीवन के सच्चे अर्थ को समझाता हुआ, शुभकामनाएं !
आपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया मन को छू गई, आपको मेरा सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना, सार्थक सन्देश देती, जय श्री राधे
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका सुरेन्द्र जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं । राधे राधे ।
जवाब देंहटाएंमानव को चेतावनी देता मर्मस्पर्शी और सारगर्भित सृजन जिज्ञासा जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय मीना जी,आपको मेरा नमन ।
जवाब देंहटाएंदूसरों के दर्द में तू पकड़ माथा,कब था रोया ।
जवाब देंहटाएंकिस घड़ी करके मशक्कत, तूने ऐसा बीज बोया ।।
बहुत ही भावपूर्ण रचना प्रिय जिज्ञासा जी , जो समकालीन परिस्थितियों का सूक्ष्मता पूर्ण ढंग से अवलोकन करती है | पलायनवादी मानव ने अपनी विरासतों को बेदर्दी से रौंदा है | प्रकृति की जड़ पर प्रहार कर उसे मिटाने पर आतुर मानव संततिm भावी पीढ़ियों के लिए क्या छोड़ने जा रही है , समझ नहीं आता | मन को छू गयी आपकी रचना | हार्दिक शुभकामनाएं|
बहुत बहुत आभार प्रिय सखी रेणु जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
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