मधुर धुन

ऐसी कौन मधुर धुन गाए
सुन सुन मोरा जिय हुलसाए

कभी लगे बाँसुरिया बाजे
कभी पखावज की धुन साजे
लगे कन्हैया नाचत आए

दिखे सजी दुल्हन की डोली
गाएँ सखियाँ करें ठिठोली
शहनाई की तान सुनाए

झिमिर झिमिर सावन जब बरसे
तरुवर झूमे, धरिणी हरषे
भोर सुहानी छन छन छाए

खिले कमलिनी मंद मंद
औ बहे पवन फैले सुगंध
कोयल कुहुके पपिहा गाए

चले पवन उड़ जाय चुनरिया
छलके भरी हुई गागरिया
पथिक ठहर जब प्यास बुझाए

मिलें नैन बढ़ जाय हृदयगति
कोमल मन हर्षित औ पुलकित
रोम रोम है खिलता जाए

**जिज्ञासा सिंह**

40 टिप्‍पणियां:

  1. मिलें नैन बढ़ जाय हृदयगति
    कोमल मन हर्षित औ पुलकित
    रोम रोम है खिलता जाए---

    बहुत ही खूबसूरत

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    1. संदीप जी आपका बहुत बहुत आभार, आपकी प्रशंसा भरी टिप्पणी मन को छू गई ।

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  2. उत्तर
    1. विश्वमोहन जी,आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं,सादर नमन ।

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28 -5-21) को "शब्दों की पतवार थाम लहरों से लड़ता जाऊँगा" ( चर्चा - 4079) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. कामिनी जी, नमस्कार !
      मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका बहुत आभार व्यक्त करती हूं, आपके निरन्तर स्नेह के लिए आपका हार्दिक शुक्रिया ।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ मई २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. श्वेता जी,नमस्कार !
      मेरी रचना को "पांच लिंको का आनंद" पर चयन करने के लिए आपका हार्दिक शुक्रिया,आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन ।

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  5. बहुत सुन्दर भाव, सुन्दर संयोजन, गेय।

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  6. प्रवीण जी, आपका बहुत बहुत आभार, आपकी आत्मीय प्रशंसा के लिए
    आपका नमन ।

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  7. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,जिज्ञासा दी।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन ।

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    1. ओंकार जी आपका बहुत बहुत आभार, आपकी प्रशंसा को सादर नमन एवम वंदन ।

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  9. बहुत बहुत आभार शिवम जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन

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  10. कोमल मन हर्षित औ पुलकित
    रोम रोम है खिलता जाए
    अप्रतिम..
    सादर..

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    1. आदरणीय दीदी, प्रणाम !
      आपकी प्रशंसा हमेशा मनोबल बढ़ाती है,आप स्वस्थ रहें, और अपना स्नेह प्रदान करती रहें, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  11. अभी तो सावन आया भी नहीं लेकिन सावन जैसा माहौल बना दिया ।।
    खूबसूरत रचना ।

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    1. जी सही कहा दीदी आपने, यहां रह रह के बारिश हो रही है, और मन को भी नव उल्लास की तरफ ले जाने की कोशिश जारी है,बस बरबस ही ये पंक्तियां हिलोरें मार गईं मन में,आपकी उत्साहित करती प्रशंसा मन मोह गई,आपका बहुत आभार आदरणीय दीदी.. जिज्ञासा सिंह ।

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  12. प्रकृति से सुंदर बिंब लेकर लिखी कोमल भावों की सरस अभिव्यक्ति।
    श्रृंगार कर दिया आपने धरा का बहुत सुंदर सृजन।
    अहा।

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  13. कुसुम जी आपकी प्रशंसा नव सृजन के लिए हमेशा प्रेरित करती है, सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।

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  15. कभी लगे बाँसुरिया बाजे
    कभी पखावज की धुन साजे
    लगे कन्हैया नाचत आए
    बेहद खूबसूरत रचना 👌👌

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  16. कभी लगे बाँसुरिया बाजे
    कभी पखावज की धुन साजे
    लगे कन्हैया नाचत आए
     मधुर ,सरस और   सुकोमल   भावों से भरी  रचना प्रिय जिज्ञासा जी| बरखा के आनंद में चार चाँद लगाते और भावविभोर करते  ह्रदयस्पर्शी सृजन के लिए
     हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई |

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    1. बहुत ही सारगर्भित तथा कविता को मन देती प्रतिक्रिया के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय रेणु जी ।

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  17. हिय की पीर ना जाने रसिया
     रह- रह  बजाये  मधुर  मुरलिया  
    झलक दिखाए और नज़र ना आये 
     कहाँ छुपा  चितचोर  सांवरिया  !!!!!!!

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    1. वाह! बहुत सुंदर, बांसुरी की तान हो और सांवरिया न हो,हो ही नहीं सकता । बहुत सुंदर मनमोहिनी पंक्तियां,बहुत बधाई प्रिय रेणु जी ।

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  18. सरिता जी,ब्लॉग पर आने और सुंदर टिप्पणी के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया ।

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  19. कभी लगे बाँसुरिया बाजे
    कभी पखावज की धुन साजे
    लगे कन्हैया नाचत आए
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर मनमोहक लाजवाब सृजन।

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  20. बहुत बहुत आभार सुधा जी,ब्लॉग पर आपकी मनोबल बढ़ाती प्रशंसा हमेशा नव सृजन का मार्ग प्रशस्त करती है, सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।

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