बेटे (रूप बदलते हुए )



रात बेटा आया सिरहाने बैठा 

माथे का पसीना पोंछा ।

मासूम नज़रों से मां को देखा 

और बड़ी देर तक कुछ सोचा ।।

 

बोला मुझे माफ़ कर दो माँ

अब ऐसा नहीं होगा दोबारा ।

तुम तो जानती हो मेरी ग़लतियाँ

मेरा कच्चा चिट्ठा सारा ।।

 

मैं झगड़ता हूँ सदा से

और माफ करती तुम मुझे

बड़ी मुश्किल में हूं मैं आज

तुम्हारी बेरुखी से ।।

 

बेटे ने कहा मासूमियत से

माँ को तरस आया ।

उठी, जल्दी से ख़ुश होकर

सजाकर पेट भर खाना खिलाया ।।

 

बोली इस तरह नशे में

दंगा मत करना आइंदा ।

नहीं तो मुझे नहीं पाओगे तुम

अब इस दुनिया में ज़िंदा ।।

 

बेटा सुनता रहा माँ की

नींद में डूबी आवाज़ ।

और बदलता रहा

पल पल अपना अन्दाज़ ।।

 

धैर्य रख कर माँ के 

सोने का किया इंतज़ार ।

बंद हुईं आँखें जैसे उसकी 

चुराकर गहने हुआ फरार ।।

 

दो दिन बाद लौट कर  

आया नशे में धुत्त ।

माँ अचम्भित है आश्चर्यचकित है

दोहरा रूप देखकर बेटे का अद्भुत ।।

                  

**जिज्ञासा सिंह**

28 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसे ही कुपुत्रो की वजह से भारत माता शर्मसार हुई है।

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    1. बैलकुल सही कहा शिवम जी,बहुत आभार आपका त्वरित टिप्पणी के लिए ।

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  2. जिज्ञासा दी, पीने वालों की बुद्धि, संवेदना सभी चीजें शराब हर लेती है। वास्तविक दृश्य उकेरा है आपने।

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    1. जीवन में ये दृश्य कटु अनुभव दे जाते हैं,आपका हार्दिक धन्यवाद ।

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  3. वास्तविकता लिखी है आपने! कुछ लोगो के सिर्फ रूप बदला करते हैं आदतें नहीं

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    1. बहुत बहुत आभार भावना जी,आपका कथन बिल्कुल सत्य है ।

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  4. बहुत ही मर्मस्पर्शी सृजन जिज्ञासा जी ।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय मीना जी, आपको मेरा सादर नमन ।

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  5. कुछ क्षण पूर्व ही पढ़ा आप अभी अभी कोविड से ठीक हुई हैं । बेहद खुशी हुई जिज्ञासा जी ! आप अपने स्वास्थ्य का ख्याल
    रखिएगा

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  6. आदरणीय मीना जी आपका ये आत्मीय स्नेह देखकर मन अभिभूत हो गया,इस स्नेह को मैं आभार में नहीं बांध सकती ।आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  7. कुछ लोगों की यही सच्चाई है । कपूत कब सुधरने वाले ।

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  8. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30 -5-21) को "सोचा न था"( (चर्चा अंक 4081) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी जी,आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं एवम नमन ।

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  9. आदरणीय जिज्ञासा जी,मैंने भी अभी अभी जाना कि -"आप को भी इस मुये कोविड ने छू लिया "
    परमात्मा का लाख-लाख शुक्र है आप ये जंग जीत गई और अब स्वस्थ है। हमारे बहुत सारे ब्लॉगर साथी इसकी चपेट में आये है पर शुकुन है कि -अब सब धीरे-धीरे स्वस्थ हो रहें है। बस ईश्वर से यही प्रार्थना है सब स्वस्थ हो जाये और ये शत्रु अब हमारा पीछा छोड़े ,अभी भी आप अपना बहुत-बहुत ध्यान रखियेगा। सादर नमस्कार आपको

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    1. कामिनी जी मेरा कुशल लेने आपको दोबारा ब्लॉग पर आई देखकर मन प्रफुल्लित हो गया,सच कामिनी जी आप जैसे मित्रों
      का स्नेह और दुआ है, कि हम सभी बाल बाल बच गए, हां परेशानी तो हुई पर अब सभी ठीक हैं,और सक्रिय हैं ।
      आप को मेरा विनम्र नमस्कार और शुभकामनाएं ।

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  10. नशेडों का कोई भरोसा नहीं, नशा ही उनका संसार बन जाता है
    माँ-बाप रिश्ते नाते सब बेकार हैं उनके लिए, सबकुछ है नशा करना

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    1. कविता जी,आपकी हर बात बिलकुल सत्य है,ब्लॉग पर आकर सार्थक टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

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  11. बहुत ही मर्मांतक प्रसंग को समेटता भावपूर्ण काव्य चित्र स्तब्ध सा करता है जिज्ञासा जी। नशे में आकंठ डूबे बेटे की मां होना अपनें आप में बहुत बड़ा दुर्भाग्य है, उसके साथ ये छद्म रूप कितना दुख देता होगा उस मां को, ये सोचकर बहत दुःख होता है। पर नशेबाजो का हृदय किसी के लिए नहीं पसीजता। शब्द चित्र रचने में बहुत माहिर हैं आप । इस मार्मिक रचना के लिए बधाई आपको।

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    1. रेणु जी,आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया कविता को विस्तार दे गई,आपका स्नेह तो संजीवनी जैसा है,मनोबल बढ़ाने के लिए आपका बहुत शुक्रिया.. शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  12. बहुत ही उम्दा और सटीक रचना! 💜❤दिल को छू जाने वाली अत्यंत मार्मिक रचना!

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  13. प्रिय मनीषा जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार एवम अभिनंदन । आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  14. कलयुगी बेटे का यथार्त चित्रण। मार्मिक अभिव्यक्ति

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  15. बलबीर सिंह जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवम नमन ।

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  16. सभी ऐसे नहीं होते, पर होते तो हैं ही :(

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  17. सही कहा आपने,आपको मेरा सादर नमन ।

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  18. ये कड़वा सच है जिज्ञासा जी, नशेड़ी का सबसे गहरा रिश्ता नशे से होता है और सब रिश्तों से वह नीचता की सीमा तक फायदा उठाता है । बस पीने के समय हाथ में पैसा न हो तो वो हर तरकीब निकाल कर कैसे भी धोखा ही देगा ।
    खैर आपकी रचना बहुत हृदय स्पर्शी है यथार्थ के आसपास ।
    आप कोविड़ के शिकंजे में आई पढ़ा जानकर चिंता हुई अब कैसे हैं स्वास्थ्य आपका । पूरा ध्यान रखें।
    सस्नेह।

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  19. कुसुम जी,आपकी आत्मीय टिप्पणी पढ़कर बहुत सुंदर भावों की अनुभूति हुई,आपका बहुत बहुत आभार ।
    कुसुम जी हमारा पूरा परिवार कोविड के चपेट में आ गया था, पर उसके विकराल रूप से बच गए और हमें अस्पताल भी नही जाना पड़ा
    मैं जल्दी ही ब्लॉग पर आपबीती डालूंगी,आप मेरे अनुभव को जरूर पढ़िएगा । अभी फिलहाल सभी ठीक हैं ।

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