दिया जैसे जलाया,रोशनी ब्रम्हांड में फैली
हुआ ऐसा उजाला छुप गई दुनिया मेरी मैली
दिए का मोल करने लग गईं अनमोल आँखें
गगन में उड़ चलें लाखों पतंगे खोल पाँखें
ये मिट्टी से बना दीपक है या है धातु निर्मित
अलौकिक ज्योति इसकी कर रही है विश्व जागृत
मुझे भी चाहिए आलोक देता दीप ऐसा
जलाकर खुद की काया दीप्ति देता जो हमेशा
दिए ने दे दिया उपहार उज्ज्वल हर दिशा को
खोलना चक्षु खुद ही पड़ गया गहरी निशा को
मैं हाथों में दिया थामे चली किस ओर न जानूँ
भरी जाती हृदय में कांति कैसी ये भी पहचानूँ
खुला जो मार्ग दिखता उस तरफ मैं चल पड़ी आगे
बढ़े जब कदम दृढ़ता से,अँधेरा पीछे है भागे
दिया आलोक फैलाए, है छाई चाँदनी जगमग
करें मिल के उजाला हम, तो जागृत होगा सारा जग
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत बढ़िया🌻
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम जी।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिव्या जी,मेरी रचना के चयन के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवम अभिनंदन ।सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंबहुत सुंदर ! कभी-कभी अलग नजरिए से देखें तो कितना हौसला होता है इस ज़रा से दीये में, अपार अन्धकार से भिड़ने में भी पल भर नहीं लगाता ! उसी मनोबल का ही परिणाम होता है कि प्रभु को भी सुबह का उजाला भेजना पड़ता है
जवाब देंहटाएंदिए के प्रति आपके सुंदर भाव और इतनी सुंदर अर्थवान टिप्पणी के लिए आपका बहुत शुक्रिया गगन जी ।
हटाएंज्योति से ज्योति जलाते रहो ---
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार एवम नमन।
जवाब देंहटाएंप्रिय जिज्ञासा जी . ऐसा दिया तो ज्ञान का ही हो सकता है , जो तन -मन को नवीन आभा से भरकर भीतर मानवीय संवेदनाओं का संचार करता है
जवाब देंहटाएं| यही आत्मज्योति प्रज्ज्वलित हो मानवता का पथ -प्रशस्त करती है |भावपूर्ण और सार्थक रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं|
आपकी सुंदर विवेचना मन में दिया जला गई ,बहुत आभार प्रिय सखी ।
हटाएंबेहतरीन रचना जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसा को विनम्र नमन है।
जवाब देंहटाएंदिया आलोक फैलाए, है छाई चाँदनी जगमग
जवाब देंहटाएंकरें मिल के उजाला हम, तो जागृत होगा सारा जग
भावप्रबल रचना ,शुभकामनायें जिज्ञासा जी !!
आपका बहुत आभार अनुपमा जी, सादर नमन।
हटाएंअति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय,सादर नमन ।
हटाएंदिये को प्रतीक बना कर मानस के अंधकार से जूझने की सार्थक चिंतन देती गहन भाव रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन जिज्ञासा जी।
आपका बहुत आभार कुसुम जी, आपकी टिप्पणी ज्योति सी जगा गई,सादर नमन ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंविनीता जी, आपका बहुत बहुत आभार एवम नमन ।
जवाब देंहटाएंसदा ही मन का दिया ऐसे ही राह दिखाता रहे..
जवाब देंहटाएंइन सुंदर शब्दों के लिए आपका हार्दिक शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार नम्रता जी ।
जवाब देंहटाएंपढ़कर अभिभूत हूँ। किन शब्दों में प्रशंसा करूं इस रचना की? और कितनी करूं?
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका जितेन्द्र जी, आपकी प्रतिक्रिया के बिना ब्लॉग सूना रहता है,जाहिर है,आप एक अच्छे समीक्षक हैं,आपकी प्रशंसा हमेशा मायने रखती है
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