जब उमड़ घुमड़ बरसे मेघा
फिर आज अँगन उतरे मेघा
पहले बदली बनकर छाए
फिर गरज गरज मोहे धमकाए
बिजली बन टूट पड़े मेघा
पत्ती पत्ती रसधार चुए
हर्षें जैसे कचनार छुए
अब बिहँसि बिहँसि बरसे मेघा
मैं भर भर नैन निहार रही
आरती सजाए उतार रही
लड़ियों जैसे लटके मेघा
सब ताप बुझाय किए शीतल
कल कल,छल,छल, बस जल ही जल
सरिता जैसे बहते मेघा
नैनन की राह उतर हिय में
बसते जाते मेरे जिय में
मन कोटि न अब समझे मेघा।
प्रिय के बिन सूना नैन मेरा
और लूट लिया है चैन मेरा
बिरहा में हम तड़पे मेघा
कोई राह निकालो जतन करो
मोरे पिय से मोरा मिलन करो
दिन रैन नहीं कटते मेघा
**जिज्ञासा सिंह**
सब ताप बुझाय किए शीतल
जवाब देंहटाएंकल कल,छल,छल, बस जल ही जल
सरिता जैसे बहते मेघा
अहा...
प्रवीण जी,आपका बहुत बहुत आभार,आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।
हटाएंवाह!जिज्ञासा जी ,बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शुभाजी,सादर नमन ।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल .मंगलवार (15 -6-21) को "ख़ुद में ख़ुद को तलाशने की प्यास है"(चर्चा अंक 4096) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
कामिनी जी,नमस्कार! मेरी रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंवाह♥️
जवाब देंहटाएंशिवम जी आपका बहुत बहुत आभार ।
हटाएंजिज्ञासा जी आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा । अच्छा और सुंदर कहते हैं आप । सूंदर भाव धाराप्रवाह । अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
आपकी टिप्पणी का हार्दिक स्वागत करती हूं,मैने इसी साल ब्लॉग शुरू किया है,आप जैसे प्रबुद्ध लोगों का स्नेह संजीवनी समान है ।
जवाब देंहटाएंबिरहा के सुन्दर वर्णन ने अप्रतिम काव्य रूप लिया !!सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुपमा जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन।
हटाएं"कोई राह निकालो जतन करो
जवाब देंहटाएंमोरे पिय से मोरा मिलन करो
दिन रैन नहीं कटते मेघा"
मेघा से बड़ी प्यारी मुनहार। बेहद प्यारी बरखा गीत ,सादर नमन जिज्ञासा जी
बहुत आभार कामिनी जी, आपकी सुंदर भावों भरी प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन।
हटाएंअमृत रस टपकाते मेघा, धरा की प्यास बुझाते मेघा
जवाब देंहटाएंगगन जी,आपका बहुत बहुत आभार, आपकी सुंदर टिप्पणी का हार्दिक स्वागत है ।
हटाएंनैनन की राह उतर हिय में
जवाब देंहटाएंबसते जाते मेरे जिय में
मन कोटि न अब समझे मेघा।--मधुरतम पंक्तियां...।
आपकी सुंदर प्रतिक्रिया को नमन एवम वंदन ।
हटाएंमेघों की उमड़ घुमड़ और प्रिय से विरह...
जवाब देंहटाएंकोई राह निकालो जतन करो
मोरे पिय से मोरा मिलन करो
दिन रैन नहीं कटते मेघा"
बहुत ही खूबसूरत मनुहार...
मनमोहक एवं लाजवाब सृजन
वाह!!!
आपकी सुंदर प्रशंसनीय प्रतिक्रिया मन को छू गई,मेरा आपको सादर नमन ।
हटाएंविरह और मेघ एक दूसरे के परिपूरक लग रहे ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अंदाज़े बयाँ ।
जी आपका, बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी,आपको मेरा सादर अभिवादन।
हटाएंवाह पुरातन कवियों के समान मेघा को दूत नहीं तो, कम से कम सहयोग की अपील बहुत सुंदर प्रवाह लिए मनभावन प्रकृति के सुंदर रंगों से सजी सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंअभिनव सृजन।
आपकी सुंदर टिप्पणी मन को मोह गई,आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणा है ।
हटाएंमेघदूत से सुंदर मनुहार,बेहद सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार विनीता जी,सादर नमन ।
हटाएंबहुत ही सुंदर काव्य-सृजन किया है आपने जिज्ञासा जी। आपकी काव्याभिव्यक्ति प्रत्येक नवीन सृजन के साथ- श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर होती जा रही है। यह एक कवयित्री के रूप में आपके उत्तरोत्तर विकास का प्रमाण है।
जवाब देंहटाएंआप की प्रतिक्रिया देख बड़ा हर्ष हुआ,कई बार आपके ब्लॉग पर गई,
जवाब देंहटाएंआपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया का हार्दिक अभिनंदन एवम आभार ।
पत्ती पत्ती रसधार चुए
जवाब देंहटाएंहर्षें जैसे कचनार छुए
अब बिहँसि बिहँसि बरसे मेघा
बहुत सुंदर पिय जिज्ञासा जी | मेघ की आमद पर यादों से उलझते वीतरागी मन का विरह मिश्रित भावपूर्ण गान | भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए आप सराहना की पात्र हैं | हार्दिक स्नेह और बधाई ||
आपकी सुंदर प्रशंसा ने कविता का सृजन सार्थक कर दिया, आपका बहुत बहुत आभार एवं नमन।
जवाब देंहटाएंदिन रैन नहीं कटते मेघा"
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत मनुहार...
मनमोहक एवं लाजवाब सृजन
बहुत सुंदर कविता
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