विश्वास करो सब संभव है

विश्वास करो सब संभव है ।
दुर्गम पथ का हर राही ही
झंझावातों से जूझ, बूझ
हर मार्ग बनाता सौरव है ।।

वो ही पड़ाव पर पहुँचेगा,
अपने तलवों को घिस घिस के ।
दुविधा के छाले फूटेंगे,
हर घाव बहेगा रिस रिस के ।
गूलर की छालें छील पका
जो सरस बनाता अवयव है ।।

जब धीर बढ़े, गंभीर चले,
दोनों कर जुड़े हुए पथ में ।
शाश्वत सत विचरे भाव प्रबल,
बैठे स्थिर दोनो रथ में ।
झाँझर बजती नूपुर गाते,
संग झूम नाचती ये भव है ।।

जो ले विराग का भाव चले,
रूठे है हवाओं की धुन है ।
है धूल धूसरित वातचक्र, 
घनघोर अनर्गल गर्जन है ।
थकती जाती मति की गति भी,
पीड़ा का होता उद्भव है ।।

जो था विराट वो हुआ लघू,
हर चोटी को कर गया नमन ।
कैसे क्यों कब उत्तुंग छुए,
कब ठहर गए कब हुआ गमन ।
सब कुछ विस्मृत हो जाता जब,
चहुँ ओर मार्ग दिखता नव है ।।

ये बड़ी प्रबलता का क्षण है,
अपने अंदर की शक्ति संजो ।
जो बरगद जैसा वृक्ष बने,
ऐसे ही बीजों को तू बो ।
खग विहग सजाएँगे दुनिया,
सदियों तक गूँजे कलरव है ।।

**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल

22 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेरक रचना ।।
    स्वयं पर विश्वास कर सब कुछ काम करना संभव हो जाता है ।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी । आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया हमेशा मनोबल बढ़ाती है । आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन ।

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  2. बहुत ही प्रेरणादायक रचना!
    मन के हारे हार है
    मन के जीते जीत!
    मैदान में हारा हुआ व्यक्ति जीत भी सकता है पर मन से हारा हुआ कभी नहीं जीत सकता!

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय मनीषा । तुम्हारी प्रतिक्रिया बहुत सार्थक और सारगर्भित है ।

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  3. सार्थक संदेश वाली बहुत ओजस्वी कविता !

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    1. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर । आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया हमेशा मनोबल बढ़ाती है । आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन ।

      हटाएं
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२९-०१ -२०२२ ) को
    'एक सूर्य उग आए ऐसा'(चर्चा-अंक -४३२५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  5. बहुत बहुत आभार अनीता जी, चर्चा मंच में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन । मेरी शुभकामनाएं ।

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  6. बहुत बढ़िया प्रस्तुति प्रिय जिज्ञासा जी। कर्मशील व्यक्ति के लिए सब सम्भव है और कर्महीन सफलता के स्वाद से सदैव वंचित रहा करते हैं। विश्वास और साहस से सब संभव है। ओज और प्रेरणा भरा मधुर सृजन

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    1. बहुत बहुत आभार और अभिनंदन ।आपकी ये ओजपूर्ण प्रतिक्रिया हर नव सृजन की पोषक है । हृदय तल से नमन और वंदन प्रिय सखी ।

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  7. ये बड़ी प्रबलता का क्षण है,
    अपने अंदर की शक्ति सजो ।
    जो बरगद जैसा वृक्ष बने,
    ऐसे ही बीजों को तू बो ।
    खग विहग सजाएँगे दुनिया,
    सदियों तक गूँजे कलरव है ।।
    👌👌🌷🌷

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    1. आपकी सराहना मेरे नव सृजन का द्योतक है आभार एवम अभिनंदन 👏👏💐💐❤️❤️

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  8. वाह ! सुंदर गेय पदों से युक्त प्रेरक रचना, अंतिम पैरा में सजो के स्थान पर संजो कर लें.

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  9. जी,बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी । आपकी प्रशंसा को नमन । जी सही कर लिया😊😊👏👏💐💐

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  10. ये बड़ी प्रबलता का क्षण है,
    अपने अंदर की शक्ति संजो ।
    जो बरगद जैसा वृक्ष बने,
    ऐसे ही बीजों को तू बो ।
    खग विहग सजाएँगे दुनिया,
    सदियों तक गूँजे कलरव है ।।बहुत सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार अनुराधा जी । आपकी प्रशंसा को नमन और वंदन ।

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  11. आत्म विश्वास के संवेदन-सामर्थ्य का अति सुन्दर प्रकटीकरण। उत्कृष्ट कृति एवं संदर्भ-लय। गूँजता कलरव-सा....

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  12. आपका बहुत बहुत आभार अमृता जी ।आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत और वंदन।

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  13. शक्ति और विश्वास भाव लिए सुन्दर गीत ...
    सुन्दर अभिव्यक्ति है ...

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