नयी नवेली जात
सड़क पर घूम रही है ।
माथे जड़े बिसात
हवा संग झूम रही है ॥
चुप चुप छुपकर उसे देखना
मुँह पर उँगली रखकर ।
नज़र कहीं न पड़ जाए
रहना उससे बचकर ॥
गज के जैसी चाल,
राह में दूम रही है ॥
कसा शिकंजा अगर
पड़ेगा सब पर भारी ।
करते बड़े शिकार
स्वयं वे बड़े शिकारी ॥
फँसने और फँसाने की
अब चक्की घूम रही है ॥
मकड़े के जिस जाल
फँसी युग युग से चींटी ।
खड़ा सिपाही देख रहा
था, बजी न सींटी ॥
वही लिए संताप जात
अब बूम रही है ॥
**जिज्ञासा सिंह**
जिज्ञासा, अगर तुम्हारा इशारा हमारे देशभक्तों की तरफ़ और धर्म-मज़हब के ठेकेदारों की तरफ़ है तो फिर ऐसी गुस्ताख़ी करने की भारी कीमत चुकाने को तैयार रहना.
जवाब देंहटाएंजी,आपका आदेश सर माथे पर ।
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार।
बहुत सुन्दर रचना ...
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