नेह की भूखी खड़ी थीं आज अम्मा ।
श्वेत वस्त्रों में जड़ी थीं आज अम्मा ॥
थीं सजाती माथ पे बिंदिया जहाँ ।
केसरी चंदन गढ़ी थीं आज अम्मा ॥
जल छिड़कतीं, बुदबुदाते होंठ उनके ।
मंत्र जीवन का पढ़ीं थीं आज अम्मा ॥
जो बहक जातीं थीं निर्मल भावना में ।
वक्त के हाथों कढ़ी थीं आज अम्मा ॥
कह हैं जाते भाव उनके चक्षु के ।
ख़ूब हालातों लड़ीं थीं आज अम्मा ॥
कुछ मिलेगा मूल्य उनके कर्म का ।
ताकती पल-पल घड़ी थीं आज अम्मा ॥
संग उनके हैं सखी अगणित खड़ी ।
जोड़ती अब भी कड़ी थीं आज अम्मा ॥
ज्यों कुरेदा मर्म उनके गर्भ का ।
बरस बन बदरी पड़ी थीं आज अम्मा ॥
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (11-05-2022) को चर्चा मंच "जिंदगी कुछ सिखाती रही उम्र भर" (चर्चा अंक 4427) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आदरणीय शास्त्री जी, सादर प्रणाम।
हटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन।मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
सच इन्हें भी आदर मिलना चाहिए ,बहुत मार्मिक लिखा !!
जवाब देंहटाएंआपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार अनुपमा जी ।
हटाएंबेहद मर्मस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंआपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार अनुराधा जी ।
हटाएंहटाएं
बहुत सुंदर रचना । इन अम्मोन को मेरी शुभकामनाएँ ।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी। ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति देख मन अभिभूत हो जाता है । आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन।
हटाएंहृदय स्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंआपने संवेदनाओं को मुखरित कर दिया जिज्ञासा जी।
अप्रतिम।
मनोबल बढ़ाने के लिए बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय कुसुम जी ।
हटाएंरंगीन जब श्वेत में परिवर्तित होता है,तो परिवार और समाज की आंखों से ओझल होने लगता है।बहुत सुंदर विषय और सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित प्रतिक्रिया । बहुत आभार आपका रश्मि जी ।
हटाएंवाह वाह!प्रभावशाली अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
हटाएंबेहद मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति जिज्ञासा जी !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी ।
जवाब देंहटाएंबेहद मर्मस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंएक समय की कई संज्ञाओं से सजी मायेँ जब माथे के सिन्दूर के साथ जीवन के सभी रंग गँवा बैठती हैं तो जीने का सलीका ही बदल जाता है।एक मार्मिक अभिव्यक्ति जो निशब्द कर गये।///
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