आशा का पथ

 

नवल रश्मियाँ पंख लगाकर

उड़तीं जब अम्बर 

झिलमिल छवी देख इतराता 

मुस्काता सागर 


कुंजों में कोयल गाती

मधुरिम तान प्रभाती  

इंद्रधनुष के रंगों में रंग

वसुधा मन मुस्काती 

मद्धिम गति से आज 

पधारे द्वार मेरे दिनकर 


झीनी-झीनी चूनर ओढ़े

चलतीं सरस हवाएँ 

चूनर के कँगूरों पर 

लड़ियाँ हैं शोभा पाएँ 

राही मतवाला हो चलता 

आशा के पथ पर 


यहीं कहीं जीवन है रहता

इस सृष्टि के मध्य 

नाखूनों पर नर्तन करता 

एकाचित आबद्ध 

छोड़-छाड मन की वितृष्णा

राग-रागिनी भर 


नवल रश्मियाँ पंख लगाकर

उड़तीं जब अम्बर 

झिलमिल छवी देख इतराता 

मुस्काता सागर 


**जिज्ञासा सिंह**


15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर गीत , आशा का संचार करता हुआ ।

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  2. बहुत सुंदर, प्राकृतिक सौंदर्य के साथ आशा का संचार करती मनोरम रचना ।
    सादर

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१०-०८ -२०२२ ) को 'हल्की-सी सीलन'( चर्चा अंक-४५१७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अनीता जी ।ब्राचना के चयन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन। मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

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  4. प्रकृति के सौंदर्य का मोहक वर्णन।

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  5. जब प्रकृति अपने रंग में मुस्काती है तभी अन्तर्मन में भी उमंगे जादू जगाती हैं।अभिनव सृजन जो अत्यंत भाव-पूर्ण और मनभावन है।

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