चलो दोस्त गाँधी को बाँटें,
बाँट-तराज़ू तुम ले आना ।
एक तरफ़ गाँधी को रखना
एक तरफ़ उनका नजराना ॥
नजराने में राष्ट्रपिता की महिमा तोलें ?
दीवारों के कान ज़रा कुछ धीरे बोलें ।
बड़े हो गए छेद, है दाँव लगाए बैठे,
कच्चा-चिट्ठा,धीरे-धीरे रह-रह खोलें ॥
तोलेंगे ज़रूर चाहे जितना हल्ला हो,
चाहे जितना पड़े चीखना औ चिल्लाना ॥
सुनो घड़ी नजराने वाली महँगी होगी,
पल-पल का हिसाब लेगी औ देगी ।
अब वो घड़ी समय थोड़ी न बतलाएगी,
हर चालों पर ठहरी एकटक नज़र रखेगी ।
भाग लुकाएँगे हम पहन के उनकी पनही,
लाठी लेके तुम मेरे पीछे आ जाना ॥
कहे तराज़ू लाओ उनका चश्मा तोलें,
लेंस लगा है या शीशे का,पर्तें खोलें ।
देख रहा सब वो भी होगा पर चुपके से,
निष्कर्षों के घालमेल में मिर्ची घोलें ॥
चरखा भी आज़ादी के मतवालों में था
ये बातें दीवारों से भी न कह जाना ॥
**जिज्ञासा सिंह**
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०३-१० -२०२२ ) को 'तुम ही मेरी हँसी हो'(चर्चा-अंक-४५७१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी।
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआभार ज्योति जी। सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार।
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंवाह जिज्ञासा !
जवाब देंहटाएंन तो गांधी जी का चश्मा, न तो उनका चरखा और न ही उनकी घड़ी, अगर आज की तारीख़ में कोई चीज़ हमारे काम की है तो वो है उनकी लाठी.
इस लाठी के बल पर हम धन-दौलत ही नहीं, कुर्सी भी हासिल कर सकते हैं.
बहुत बहुत आभार आदरणीय सर।
हटाएंसार्थक एवं सुन्दर गीत। बापू को नमन।
जवाब देंहटाएंआभार आपका।
हटाएंअब चलन नहीं रहा
जवाब देंहटाएंआदर्शों को जीने का
अक्सर मज़ा लेते हैं
लोग छिद्रान्वेषण का
जिज्ञासा जी, दुखती रग पर हाथ रख दिया आपने । पर समय का चरखा नयी कथा बुन देगा । देखियेगा ।
जी, सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार और अभिनंदन।
हटाएंएक भिन्न रंग में रंगी व्यंग्यत्मक कविता रची है आपने बापू पर। आपका प्रयास प्रशंसनीय है।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसा हमेशा सृजन को सार्थक कर जाती है । आभार आपका
हटाएंबापू ने इस दुनिया को जो दिया है वह अनमोल है, सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय दीदी।
हटाएंसुंदर काव्य पंक्तियां
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मनोज जी ।
जवाब देंहटाएंगाँधी जी को समर्पित बहुत सुन्दर कविता । अत्यंत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी ।
हटाएंबहुत सुंदर कविता...बढ़िया अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार रूप जी !
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