राधिके ! मधु बोलो कछु बोल
तुम्हरे बचन कान्हा बेल्मैहैं,
घूमत अइहैं डोल ।
राधिके ! मधु बोलो कछु बोल ॥
जब से गए सुधि बिसरि गए हैं
हम उनके बिनु बाँझि भए हैं
ढरक-ढरक दोहज बहे हिय से
अधर खुश्क, अनबोल ।
राधिके ! मधु बोलो कछु बोल ॥
चरत धेनु, जमुना बिच कूदीं
ग्वालिन नयन परी हैं मूँदीं
गिरि आतुर, गिरधर कब अइहैं
अंगुलि घुमइहैं गोल ।
राधिके ! मधु बोलो कछु बोल ॥
अइसे जगत नाहिं कोई छोड़े
प्रिय-प्रेमी संग नाता तोड़े
चलत घरी बूझा नहिं मनवा
पियत अरंडी घोल ।
राधिके ! मधु बोलो कछु बोल ॥
**जिज्ञासा सिंह**
सुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय
हटाएंवाह! पता नहीं राधिके कब कछु बोलेंगी🌹😄🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय ।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 27 अक्टूबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 27 अक्टूबर 2022 को 'अपनी रक्षा का बहन, माँग रही उपहार' (चर्चा अंक 4593) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन। भैया दूज की हार्दिक शुभकामनाएं ।
हटाएंइस मधु बोल से मन रहा है डोल.… अति मनभावन गीत। हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार अमृता जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचा है गीत।
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण गीत।
जवाब देंहटाएंसुंदर गीत ।
जवाब देंहटाएंआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं
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