सरगमी धुन
और बसंती ऋतु।
एकटक हूँ
हो गई हूँ बुत॥
झुंड में लहरों पे उड़ना
चहचहाना चोंच भरना।
एक लय एक तान लेके
फ़लक पे जाके उतरना॥
झूमते-गाते परिंदे
चल दिए मेरी नदी से,
नैन खोले मैं खड़ी
हूँ दृश्य है अद्भुत॥
कूकती कुंजों में कोयल
पीकहां बोला पपीहा।
डोलता मद में भ्रमर
मकरंद भरकर एक फीहा॥
पीत वस्त्रों में
सुसज्जित ये धरा,
इतरा रही है
प्रेमरंग में धुत॥
खोल दी हर गाँठ ऋतु ने
दूर तक उजास है।
दिख रहा है उस जहाँ तक
रंग और उल्लास है॥
धूप दे अपने परों को
चेतना उनमें भरी है,
आज जीना चाहती हूँ
भाव ले अच्युत॥
**जिज्ञासा सिंह**
सुंदर सृजन! प्रकृति और अध्यात्म का मिलन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दीदी ।
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 30 ,जनवरी 2023 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
पांच लिंकों रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय दीदी। आपको मेरा सादर नमन।
जवाब देंहटाएंसरगमी धुन
जवाब देंहटाएंऔर बसंती ऋतु।
एकटक हूँ
हो गई हूँ बुत…
बहुत सुन्दर रचना !
बहुत आभार आपका।
हटाएंसरगमी धुन
जवाब देंहटाएंऔर बसंती ऋतु।
एकटक हूँ
हो गई हूँ बुत…
बहुत सुन्दर रचना!
यूं ही झूमते परिंदों को देख मन प्रफुल्लित हो जाता है वैसे में आपकी ये सुंदर रचना मन को आह्लादित करती हुई...बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए।
हटाएंकूकती कुंजों में कोयल
जवाब देंहटाएंपीकहां बोला पपीहा।
डोलता मद में भ्रमर
मकरंद भरकर एक फीहा॥
पीत वस्त्रों में
सुसज्जित ये धरा,
इतरा रही है
प्रेमरंग में धुत॥
अहा!!!
अद्भुत शब्दचित्रण
लाजवाब सृजन।
आपका बहुत धन्यवाद सुधा जी ।
हटाएंआदरणीया जिज्ञासा सिंह जी ! प्रणाम !
जवाब देंहटाएंभीतर का उजास और उल्लास ही सदा रहने वाला बसंत है , बहुत सुन्दर पंक्तियों के लिए अभिनन्दन !
आपको "श्री नर्मदा जयंती " "श्री महानंदा नवमी" की हार्दिक शुभकामनाए !
भारत माता की जय !
बहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंखोल दी हर गाँठ ऋतु ने
जवाब देंहटाएंदूर तक उजास है।
दिख रहा है उस जहाँ तक
रंग और उल्लास है॥
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अति सुंदर मनमोहक रचना जिज्ञासा जी।
सस्नेह।
आपकी सुंदर प्रतिक्रिया का स्वागत है। तहेदिल से शुक्रिया।
हटाएंखोल दी हर गाँठ ऋतु ने
जवाब देंहटाएंदूर तक उजास है।
दिख रहा है उस जहाँ तक
रंग और उल्लास है॥
अंतर्मन में बसंत का उल्लास जगाता लाजबाव सृजन जिज्ञासा जी 🙏
बहुत बहुत आभार कामिनी जी।
हटाएंसुंदर भाव।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।
जवाब देंहटाएंबसन्त ऋतु में प्रकृति के सौन्दर्य का सजीव शब्द चित्र उकेरती लाजवाब रचना जिसमें अन्तर्मन में उठते भावों की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है । अति सुन्दर सृजन जिज्ञासा जी!
जवाब देंहटाएंप्रकृति का बहुत ही सुंदर वर्णन।
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंखोल दी हर गाँठ ऋतु ने
जवाब देंहटाएंदूर तक उजास है।
दिख रहा है उस जहाँ तक
रंग और उल्लास है॥
बहुत सुन्दर सृजन
प्रकृति और मौसम के रँगों को बाखूबी लिखा है ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन ...