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आसमान में उड़ने वाले
मेरे पंख नहीं हैं।
हिलते-डुलते चूजे ने
निज मन की बात कही है॥
कोमल-कोमल देंह हमारी
लुढ़क रहा हूँ इधर उधर।
कितनी भी कोशिश कर लूँ
मैं उठ न पाऊँ गिरकर॥
अम्मा मेरी दाना लाने
जानें कहाँ गयी है॥
रात-रात भाई बहनों की
धक्कामुक्की होती।
मेरी सबसे छोटी बहना
दबकर नीचे रोती॥
छोटा नीड़ भरी गर्मी
बस दुख की बात यही है॥
पानी पेड़ सभी कुछ ग़ायब
छत पर माँ है रहती।
सर्दी-गर्मी वर्षा में
मौसम की मार है सहती॥
जंगल बिन मंगल न होगा
बिलकुल बात सही है॥
(२)कोयल कूक रही
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सुबह सवेरे बोल रही है
कोयल मधुरिम बोल।
दादी कहतीं भोर हो गई
जल्दी आँखें खोल ॥
अरी बावरी तेरी सखियाँ
सब गानें सुन लेंगीं।
कोयल के मीठी तानों से
सुंदर धुन रच लेंगीं॥
फिर गाएँगी गीत सुहाने
कानों में रस घोल ॥
दूर कहीं पेड़ों से झाँके
बैठी एक गिलहरी।
फ़र जैसी मख़मल सी काया
ओढ़े ओस सुनहरी॥
कोयल के गानों पे नाचे
घूम-घूम कर गोल ॥
मगन हो चली पवन बहे
झूमें डाली-डाली।
इंद्रधनुष छाया अम्बर
धरती पर ख़ुशहाली॥
मनहर सुंदर छवि प्रभात की
मन जाता है डोल ॥
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 21 मार्च 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
पांच लिंकों का आनंद में बालगीतों को स्थान देने के लिए बहुत आभार और अभिनंदन आपका।
जवाब देंहटाएंसादर शुभकामनाएं 🌺🌺
मीठे मीठे गीत
जवाब देंहटाएंबात करें गंभीर
इनकी मिठास में कोयल की कूक और गौरैया का चहचहाना सुना. अच्छा लगा.
बहुत आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंगौरैया के मन की पीर को सुंदर शब्दों में ढाला है आपने, गिलहरी और कोकिल से मुलाक़ात भी मन को छू गयी
जवाब देंहटाएंबहुत आभार दीदी।
हटाएंआपके बालगीत मन मोह लेते हैं जिज्ञासा जी । दोनों गीत बालवृन्द को प्रकृति से जोड़ने वाले हैं ।बहुत बहुत बधाई सुन्दर सृजन हेतु ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी । आपका स्नेह मनोबल बढ़ा जाता है।
हटाएंआभार | सुन्दर लेखन |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय जोशी जी ।
हटाएंदोनों बालगीत बहुत ही प्यारे प्रेरणा दायक हैं जिज्ञासा जी, सरल सहज बाल बोध्यगम।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष एंव नवरात्रि पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं 🌷 ं
बहुत आभार कुसुम जी ।
हटाएंसुंदर शब्दों में ढाला है आपने,बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ
जवाब देंहटाएंआते रहा करिए। मनोबल बढ़ता है। बहुत शुक्रिया।
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