साँसों का सौदा

कर गया वो आज फिर साँसों का सौदा ।धधकते दिन आग सी रातों का सौदा 

बाग जो हमने लगाया था कभी,

आम,पीपल,नीम,वट,बाँसों का सौदा 


जड़ है काटी मूल से डालें हैं नोची,

टहनियों,सींकों,फलों,पातों का सौदा 


हाय ! उस कमबख़्त ने कुछ भी  छोड़ा,

वायु,जल,अग्नी के अहसासों का सौदा 


रो रही है बेल बूढ़ी देखकर सब

सात पुश्तों से खड़े बागों का सौदा 


दूध जिसको था पिलाया लिपटकर

कर गए हैं वो ही औलादों का सौदा 


मैं नहीं तो तुम नहीं होगे प्रिये,

कह रही हूँ मत करो आहों का सौदा 


**जिज्ञासा सिंह**

42 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब ग़ज़ल ...... पेड़ों को काट काट कर मनुष्य खुद के जीवन का सौदा कर रहा है । बेहतरीन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना को हार्दिक नमन और वंदन आदरणीय दीदी 👏🌳🌼

      हटाएं
  2. रो रही है बेल बूढ़ी देखकर सब
    सात पुश्तों से खड़े बागों का सौदा ॥///
    हृदय विदीर्ण करती मार्मिक अभिव्यक्ति प्रिय जिज्ञासा जी।कितना कहें इस संवेदनशील मुद्दे पर,कम ही होगा।आपकी एक अत्यंत भाव-पूर्ण और उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई।हर बंध अपने आप में सम्पूर्ण है।लुटी प्रकृति मानव से जवाब माँग रही है 🌺🌺🌷🌷

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मेरे सृजन का आधार है, प्रिय सखी !आपकी सराहना को हार्दिक आभार 👏🌳🌼

      हटाएं
  3. आपकी लिखी रचना 6 जून 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
  4. पर्यावरण सरंक्षण के प्रति जागरूक करती प्रभावशाली रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना को हार्दिक नमन और वंदन आदरणीय दीदी 👏🌳🌼

      हटाएं
  5. बहुत ख़ूब जिज्ञासा !
    कालिदास पेड़ की जिस डाल पर खड़े थे, उसी को काट रहे थे. आज उनकी संतान जिस पेड़ की छाँव में खड़ी है, उसे जड़ से काट रही है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी, सही कह रहे आप !
      आपकी प्रशंसा को नमन एवम वंदन।

      हटाएं
  6. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(६-०६-२०२२ ) को
    'समय, तपिश और यह दिवस'(चर्चा अंक- ४४५३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चरचांच में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार प्रिय अनीता जी । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 🌳🌼

      हटाएं
  7. सृष्टि की गुहार, सारगर्भित रचना |

    जवाब देंहटाएं
  8. आपकी सराहना को हार्दिक नमन और वंदन आदरणीय दीदी 👏🌳🌼

    जवाब देंहटाएं
  9. बाग जो हमने लगाया था कभी,
    आम,पीपल,नीम,वट,बाँसों का सौदा ॥

    जड़ है काटी मूल से डालें हैं नोची,
    टहनियों,सींकों,फलों,पातों का सौदा ॥
    हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  10. सार्थक चिंतन देता सृजन।
    पर्यावरणीय चेतावनी से भरी सार्थक पोस्ट।

    जवाब देंहटाएं
  11. अपनी स्वार्थपरता के लिए मनुष्यता को दरकिनार कर बात-बात पर सौदागर बनता मनुष्य अपने लिए विनाश के बीज बो रहा है क्या सचमुच उसे इस बात का एहसास नहीं..?
    बेहतरीन ,सार्थक संदेश से युक्त सारगर्भित सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक कर दिया ।बहुत बहुत बधाई।

      हटाएं
  12. जड़ है काटी मूल से डालें हैं नोची,

    टहनियों,सींकों,फलों,पातों का सौदा ॥
    बहुत ही सटीक एवं सारगर्भित
    पर्यावरण संरक्षण पर लाजवाब सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  13. मन को छूती भावपूर्ण गज़ल
    बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  14. जिज्ञासा जी कल मैंने प्रतिक्रिया लिखी थी वो दीख नहीं रही कृपया स्पैम में चेक करिये न।

    जवाब देंहटाएं
  15. पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरुक करती बहुत ही सरहानीय सृजन! पेड़ पौधों को बचा कर हम पर्यावरण को नहीं बचा रहें बल्कि खुद को बचा रहें हैं पर्यावरण को बचना मतलब खुद को बचाना खुद की रक्षा करना है! जब जब मानव हरे भरे वृक्षों पर कुल्हाड़ी चलाता तब तब वो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा होता है!

    जवाब देंहटाएं
  16. मैं नहीं तो तुम नहीं होगे प्रिये,
    कह रही हूँ मत करो आहों का सौदा ॥
    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  17. ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति हर्ष दे गई ।बहुत आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  18. जड़ है काटी मूल से डालें हैं नोची,
    टहनियों,सींकों,फलों,पातों का सौदा ॥
    हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत बहुत आभार आपका !

    जवाब देंहटाएं