कर गया वो आज फिर साँसों का सौदा ।धधकते दिन आग सी रातों का सौदा ॥
बाग जो हमने लगाया था कभी,
आम,पीपल,नीम,वट,बाँसों का सौदा ॥
जड़ है काटी मूल से डालें हैं नोची,
टहनियों,सींकों,फलों,पातों का सौदा ॥
हाय ! उस कमबख़्त ने कुछ भी न छोड़ा,
वायु,जल,अग्नी के अहसासों का सौदा ॥
रो रही है बेल बूढ़ी देखकर सब
सात पुश्तों से खड़े बागों का सौदा ॥
दूध जिसको था पिलाया लिपटकर
कर गए हैं वो ही औलादों का सौदा ॥
मैं नहीं तो तुम नहीं होगे प्रिये,
कह रही हूँ मत करो आहों का सौदा ॥
**जिज्ञासा सिंह**
लाजवाब ग़ज़ल ...... पेड़ों को काट काट कर मनुष्य खुद के जीवन का सौदा कर रहा है । बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना को हार्दिक नमन और वंदन आदरणीय दीदी 👏🌳🌼
हटाएंरो रही है बेल बूढ़ी देखकर सब
जवाब देंहटाएंसात पुश्तों से खड़े बागों का सौदा ॥///
हृदय विदीर्ण करती मार्मिक अभिव्यक्ति प्रिय जिज्ञासा जी।कितना कहें इस संवेदनशील मुद्दे पर,कम ही होगा।आपकी एक अत्यंत भाव-पूर्ण और उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई।हर बंध अपने आप में सम्पूर्ण है।लुटी प्रकृति मानव से जवाब माँग रही है 🌺🌺🌷🌷
आपकी सार्थक प्रतिक्रिया मेरे सृजन का आधार है, प्रिय सखी !आपकी सराहना को हार्दिक आभार 👏🌳🌼
हटाएंआपकी लिखी रचना 6 जून 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
रचना के चयन के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंपर्यावरण सरंक्षण के प्रति जागरूक करती प्रभावशाली रचना
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना को हार्दिक नमन और वंदन आदरणीय दीदी 👏🌳🌼
हटाएंबहुत ख़ूब जिज्ञासा !
जवाब देंहटाएंकालिदास पेड़ की जिस डाल पर खड़े थे, उसी को काट रहे थे. आज उनकी संतान जिस पेड़ की छाँव में खड़ी है, उसे जड़ से काट रही है.
जी, सही कह रहे आप !
हटाएंआपकी प्रशंसा को नमन एवम वंदन।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(६-०६-२०२२ ) को
'समय, तपिश और यह दिवस'(चर्चा अंक- ४४५३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चरचांच में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार प्रिय अनीता जी । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 🌳🌼
हटाएंसृष्टि की गुहार, सारगर्भित रचना |
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना को हार्दिक नमन और वंदन आदरणीय दीदी 👏🌳🌼
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ।
हटाएंबाग जो हमने लगाया था कभी,
जवाब देंहटाएंआम,पीपल,नीम,वट,बाँसों का सौदा ॥
जड़ है काटी मूल से डालें हैं नोची,
टहनियों,सींकों,फलों,पातों का सौदा ॥
हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ।
बहुत बहुत आभार आपका ।
हटाएंसार्थक चिंतन देता सृजन।
जवाब देंहटाएंपर्यावरणीय चेतावनी से भरी सार्थक पोस्ट।
बहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंअपनी स्वार्थपरता के लिए मनुष्यता को दरकिनार कर बात-बात पर सौदागर बनता मनुष्य अपने लिए विनाश के बीज बो रहा है क्या सचमुच उसे इस बात का एहसास नहीं..?
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ,सार्थक संदेश से युक्त सारगर्भित सृजन।
आपकी सार्थक प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक कर दिया ।बहुत बहुत बधाई।
हटाएंजड़ है काटी मूल से डालें हैं नोची,
जवाब देंहटाएंटहनियों,सींकों,फलों,पातों का सौदा ॥
बहुत ही सटीक एवं सारगर्भित
पर्यावरण संरक्षण पर लाजवाब सृजन ।
बहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंमन को छूती भावपूर्ण गज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत बहुत आभार आपका ।
हटाएंबेहतरीन सृजन 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ।
हटाएंजिज्ञासा जी कल मैंने प्रतिक्रिया लिखी थी वो दीख नहीं रही कृपया स्पैम में चेक करिये न।
जवाब देंहटाएंजी,श्वेता जी स्पैम में चली गई थी😀
हटाएंपर्यावरण संरक्षण के लिए जागरुक करती बहुत ही सरहानीय सृजन! पेड़ पौधों को बचा कर हम पर्यावरण को नहीं बचा रहें बल्कि खुद को बचा रहें हैं पर्यावरण को बचना मतलब खुद को बचाना खुद की रक्षा करना है! जब जब मानव हरे भरे वृक्षों पर कुल्हाड़ी चलाता तब तब वो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा होता है!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रिय मनीषा।
हटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मनोज जी ।
हटाएंमैं नहीं तो तुम नहीं होगे प्रिये,
जवाब देंहटाएंकह रही हूँ मत करो आहों का सौदा ॥
बहुत खूब
बहुत बहुत आभार आपका
हटाएंपर्यवारण की रक्षा करना बहुत आवश्यक है .
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपकी उपस्थिति हर्ष दे गई ।बहुत आभार आपका।
जवाब देंहटाएंजड़ है काटी मूल से डालें हैं नोची,
जवाब देंहटाएंटहनियों,सींकों,फलों,पातों का सौदा ॥
हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ।
बहुत बहुत आभार आपका !
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