ये मृदुल ऋतु का समय है
आज देखा द्वार मेरे
एक तरुवर हँस रहा था
मंजरी के बौर से हर
एक टहनी कस रहा था
भाल पे मोती जड़ा
जगमग टिकोरों का मुकुट
झूमता धानी धरा
का हृदय है
पंछियों के झुण्ड कलरव
गान करते पंक्तियों में
आवरण विध्वंस करते
नींव भरते भित्तियों में
व्योम एकाकार
मधुमय मधुर स्मित
इस जहाँ से उस जहाँ तक
एकमय है
मक्खियों ने डंक अपने
नोच डाले स्वयं ही
सर्प लिपटे नेवलों से
बाँह थामे गहमयी
वृष्टि में मकरंद झरते
गुदगुदी कलियों को
कर-कर गीत गाती
भ्रमर टोली
गुंजमय है
जिज्ञासा सिंह
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 अप्रैल 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
बहुत आभार आपका!
हटाएंसुन्दर | राम नवमी की हार्दिक शुभकामनायें|
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।
हटाएंरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं💐💐
बहुत सुंदर, जय श्री राम
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।
हटाएंरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं💐💐
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।
हटाएंरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं💐💐
बहुत सुंदर रचना जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार तथा ब्लॉग के सभी पाठकों को राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत आभार आपका मित्र।
हटाएंआपको भी सपरिवार रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं💐💐
वाह बहुत सुन्दर रसमय कविता .
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका दीदी।
जवाब देंहटाएंरामनवमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं💐💐
आपकी कविता ने बचपन की अमरईयां और आम के बाग की खुश्बू जहन में पिरो दी है जिज्ञासा जी...
जवाब देंहटाएंफिर जब थोड़े बड़े हुए तो विद्यानिवास मिश्र की कविता पढ़ी थी - आम में बौर,
अब आज आपकी कविता पढ़कर वही अनुभूति हो रही है...वाह
पास से गुज़रते अक्सर
कभी दूर से बाँहें फैला कर
रोक लेता आम का वह पेड़ पुराना
बहुत खुब
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