चाय की वो चुस्कियाँ

 

चाय की वो चुस्कियाँ


वो खड़े थे मैं खड़ी थी,

आँख धरती पर गड़ी थी।

भाव अधरों पर थिरककर,

काढ़ते थे मुस्कियाँ।

याद अब भी आ ही जातीं

चाय की वो चुस्कियाँ॥


हैं गुलाबी गाल मेरे,

कनखियों के वे चितेरे।

चुस्कियों में यूँ घिरे ज्यों,

घिर गए बादल घनेरे॥

चाय में रस बदलियों का

गिर रही थीं बिजलियाँ॥


बीतते जाते रहे पल,

चाय छलकी जा रही छल।

उस छलक का इस छलक में,

बह चला था ताप अविरल॥

जलती एल्युमिनियम पतीली,

साथ चिपकीं पत्तियाँ॥


हाथ हाथों में सिमटकर,

कदम कदमों संग चलकर।

चाय के ठेले से हटके,

हम खड़े थे अग्निपथ पर।

चाय की वो चुस्कियाँ,

अब बन चुकी थीं सुर्ख़ियाँ॥


जिज्ञासा सिंह

14 टिप्‍पणियां:

  1. चाय पर बहुत सुंदर कविता।
    मैंने भी कभी कहा था कि,

    ये चाय की चुस्कियां,
    अख़बार
    और तुम्हारी यादें,
    कमाल की बात तो देखो,
    तीनों सुबह-सुबह ही आती नहीं।

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    1. बहुत आभार नितिश जी, निश्चित ही आपकी कविता सुंदर होगी, इन पंक्तियों के भाव यही सूचना दे रहे!

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 मई 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-05-2023) को   "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659)    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. हाथ हाथों में सिमटकर,

    कदम कदमों संग चलकर।

    चाय के ठेले से हटके,

    हम खड़े थे अग्निपथ पर।

    चाय की वो चुस्कियाँ,

    अब बन चुकी थीं सुर्ख़ियाँ॥----बहुत ही शानदार।

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  5. वाक़ई साथ-साथ ली गई चाय की चुस्कियाँ दिलों को जोड़ती हैं, सुंदर रचना!

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  6. चाय की चुस्कियाँ खूब रंग लायीं । साथ कदम बढ़ाए हैं तो साथ तो देना होगा । बेहतरीन रचना ।

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  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  8. वाह!!!
    चाय पर इतना सुंदर सृजन !
    लाजवाब
    👌👌👌

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