नारायण-नारायण बोलो बूढ़े मन
अपना लेखा जोखा तोलो बूढ़े मन
क्या खोया क्या पाया अब तक
कहाँ तलक है पहुँची दस्तक
खाकें छानीं फाँकीं धूलें
छूटी कहाँ यार की बकझक
कितने पापड़ बेले कितने तोड़े घन
हिलो-डुलो मत उमर हो गई तेरी
छोड़ो हाटें छोड़ो करनी फेरी
भूलभुलैया की गलियों में
उमर बिताई कर-कर हेराफेरी
समय साथ चल-चल करता अभिनंदन
थोड़ा हो चैतन्य जागरूक बनो
गुनो धुनो कुछ नया नवेला सुनों
मध्यमार्ग पथ के उपवन की
छाँहें झरती ठंढी-ठंढी चुनों
छोड़ो माया और मोंहों के कानन
जिज्ञासा सिंह
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द सोमवार 02 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत। आभार आपका आदरणीय।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार। सादर अभिवादन सर!
हटाएंसुन्दर भाव,मन को छूने वाली रचना
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार!
हटाएं
जवाब देंहटाएंक्या खोया क्या पाया अब तक
कहाँ तलक है पहुँची दस्तक
खाकें छानीं फाँकीं धूलें
छूटी कहाँ यार की बकझक
कितने पापड़ बेले कितने तोड़े घन
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब
भावपूर्ण एवं लयबद्ध सृजन ।
वाह ! मुश्किल तो यही है मन कभी बूढ़ा नहीं होता, क्योंकि दिल तो बच्चा है न
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया प्रिय मित्र।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
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