नारायण-नारायण बोलो बूढ़े मन

 

नारायण-नारायण बोलो बूढ़े मन 

अपना लेखा जोखा तोलो बूढ़े मन 


क्या खोया क्या पाया अब तक 

कहाँ तलक है पहुँची दस्तक

खाकें छानीं फाँकीं धूलें 

छूटी कहाँ यार की बकझक 

कितने पापड़ बेले कितने तोड़े घन 


हिलो-डुलो मत उमर हो गई तेरी

छोड़ो हाटें छोड़ो करनी फेरी

भूलभुलैया की गलियों में 

उमर बिताई कर-कर हेराफेरी

समय साथ चल-चल करता अभिनंदन


थोड़ा हो चैतन्य जागरूक बनो

गुनो धुनो कुछ नया नवेला सुनों

मध्यमार्ग पथ के उपवन की

छाँहें झरती ठंढी-ठंढी चुनों

छोड़ो माया और मोंहों के कानन


जिज्ञासा सिंह


8 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भाव,मन को छूने वाली रचना

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  2. क्या खोया क्या पाया अब तक

    कहाँ तलक है पहुँची दस्तक

    खाकें छानीं फाँकीं धूलें

    छूटी कहाँ यार की बकझक

    कितने पापड़ बेले कितने तोड़े घन
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब
    भावपूर्ण एवं लयबद्ध सृजन ।

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