हँस रहा गणतंत्र खुलकर
आज देखा भोर में वो,
खिल रहा था क्यारियों में।
फूल-फल से आच्छादित,
अनगिनत फुलवारियों में।
ओढ़ कर धानी चुनर
हर्षित धरा भी साथ थी
क्षितिज कंचन सुरमई
प्रमुदित मुदित मन भास्कर॥
एक दिन मैं देश से अपने,
मिली आकाश में।
उड़ रहा था पंख खोले,
डूबकर उच्छवास में।
आत्मा उसकी अनोखी
तीन रंगों से सजी थी,
श्वेत केसरिया हरे
भावों के रस में लिपटकर॥
देश के अद्भुत आलौकिक,
रूप से परिचय हुआ जब।
एकता सद्भाव और,
विश्वास का उद्भव हुआ तब।
मूल्य की अतुलित धरोहर
सभ्यता सौंदर्य अनुपम,
जगमगाता हर दिशा में
तिमिर गहरा काटकर॥
जिज्ञासा सिंह
स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएं जिज्ञासा जी. आपके द्वारा रचित यह गीत बहुत ही सुंदर है.
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस पर आपकी अनुपम प्रतिक्रिया मन हर्ष से भर दिया। आपको भी स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई भाई साहब 🇮🇳🇮🇳👏👏
हटाएंबेहद सुंदर अभिव्यक्ति जिज्ञासा जु।
जवाब देंहटाएंवंदेमातरम्।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत आभार सखी! मेरी रचना को "पांच लिंकों का आनंद" में स्थान देने के लिए सहृदय धन्यवाद आपका।
हटाएंस्वतंत्रता दिवस पर शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंआपको भी बहुत शुभकामनाएं!
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आदरणीय।
हटाएं"...
जवाब देंहटाएंएक दिन मैं देश से अपने,
मिली आकाश में।
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आत्मा उसकी अनोखी
तीन रंगों से सजी थी,
श्वेत केसरिया हरे
भावों के रस में लिपटकर॥
..."
वाह! कितनी सुन्दर पंक्ति है। मन खुश हो गया।
सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंदेश के अद्भुत आलौकिक,
जवाब देंहटाएंरूप से परिचय हुआ जब।
एकता सद्भाव और,
विश्वास का उद्भव हुआ तब।
मूल्य की अतुलित धरोहर
सभ्यता सौंदर्य अनुपम,
जगमगाता हर दिशा में
तिमिर गहरा काटकर॥
काश देश का यह अद्भुत अलौकिक रूप शीघ्र मुखर हो...
बहुत ही लाजवाब गीत
वाह!!!
मनोबल बढ़ाती सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत शुक्रिया प्रिय सखी।
हटाएंवाह ! भारत भूमि को महिमा को व्यक्त करती सुंदर पंक्तियाँ!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार दीदी
जवाब देंहटाएंसुन्दर देशभक्तिपूर्ण रचना !
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