तलाकशुदा औरत



हां ! तलाकशुदा हूं मैं

निकली हूं जब से फ़रेब भरी महफ़िल से
हो गई, तुम सबसे जुदा हूं मैं 

कभी सब से जान पहचान थी मेरी 
फ़िलहाल अब तो गुमशुदा हूँ मैं

पहले जलसों की शान हुआ करती थी 
इन दिनों दिखती यदा कदा हूँ मैं
 
मेरा परिचय यूँ कराते हैं अब सब  
कि जैसे तुम सब में अलहदा हूँ मैं 

जिनकी वजहों से अलग हूं सबसे
वे समझते थे उनके जीवन में एक विपदा हूँ मैं 

खींच लेते थे बढ़े हर कदम मेरे वो 
मुझसे कहते थे तुम्हारा खुदा हूँ मैं

कितने संघर्षों से सामना हुआ मेरा
पर आगे बढ़ती  रही सदा सर्वदा हूँ मैं 

गरज नहीं अब, टीका हो उनका मेरे माथे पर 
कहना ज़रूरी भी नहीं, कि शादीशुदा हूँ मैं 

ये जो नन्ही सी जान साथ अपने लाई हूं
देना बहुत कुछ है उसको, सोचती ये सदा हूं मैं

बीज बोया है तो एक वृक्ष बनाऊँगी उसको 
आख़िर माँ और अन्नदा हूँ मैं ....... 

   ** जिज्ञासा सिंह** 

4 टिप्‍पणियां:

  1. जिनकी वजहों से अलग हूं सबसे
    वे समझते थे उनके जीवन में एक विपदा हूँ मैं

    खींच लेते थे बढ़े हर कदम मेरे वो
    मुझसे कहते थे तुम्हारा खुदा हूँ मैं

    वाह!!!

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    1. आपका बहुत बहुत आभार सधु चन्द्र जी..! आशा है जिज्ञासा की जिज्ञासा पर आपका स्नेह मिलता रहेगा..! साधुवाद..!

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  2. धन्यवाद शिवम् जी..।दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ..।

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