चित्र-साभार गूगल
ब्रम्हाण्ड में, मैं कहाँ हूँ
भटकता हुआ अक्सर सोचता रहा हूँ
शायद बवंडर में घूमता एक तिनका हूँ
या उंजाले की तलाश करता
एक जलता बुझता दिया हूँ
या पगडंडी पर कटे हुए पेड़ का
पड़ा हुआ सूखा तना हूँ
या लू के थपेड़ों में जूझती
साँय साँय करती ग़र्म हवा हूँ
या बहने को तरसता,
सूखा पड़ा एक दरिया हूँ
या फिर अपनों की भीड़ में कोना ढूँढता
जीवन जी चुका एक वृद्ध इंसां हूँ
**जिज्ञासा सिंह**
बेहतरीन कृति व सार्थक प्रस्तुति आदरणीया जिज्ञासा जी। ऐसी रचनाएँ कम ही पढने को मिलती हैं,कम से कम इस ब्लॉग जगत में ।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद। ।।।
पुरुषोत्तम जी , नमस्कार ! आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है ,आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूँ..सादर जिज्ञासा..
जवाब देंहटाएंआप लिखती ही अच्छा हैं....
हटाएंजी..सादर अभिनंदन..।
हटाएंसार्थक और भावपूर्ण प्रस्तुति। हृदय छू लेने वाली रचना के लिए आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंवीरेंद्र जी नमस्कार, आपने कविता पढ़कर प्रतिक्रिया दी..।जिसका तहेदिल से स्वागत है, अपना स्नेह बनाए रखें..।सादर..जिज्ञासा..।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मनोज जी , आपको सादर नमन..।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 11-12-2020) को "दहलीज़ से काई नहीं जाने वाली" (चर्चा अंक- 3912) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
मीना जी, नमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार व्यक्त करती हूँ..आपको हार्दिक शुभकामनायें..।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी सुन्दर टिप्पणी का हृदय से अभिनंदन करती हूँ..आपको मेरा अभिवादन..।
हटाएंभावविह्वल करती अत्यंत संवेदनशील रचना..।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
बहुत-बहुत आभार शरद जी..आपकी सुन्दर टिप्पणी से अभिभूत हूँ..शुक्रिया..।
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंवर्षा जी आपकी प्रतिक्रिया का तहेदिल से स्वागत है..आपको मेरा आभार..।
हटाएंकुछ अवशेषों को प्रतीक बना कर उसके माध्यम से वृद्धावस्था पर आपने हृदय स्पर्शी रचना लिखी है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई! लिखते रहिए यथार्थ वाली चिंतन है आपका।
जी, बहुत-बहुत आभार आपका कुसुम जी..आपके स्नेह से गौरवान्वित हूँ,इसी आशा में..जिज्ञासा..।
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